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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
(१८१) तए णं तुमं मेहा! अण्णया कयाई कमेणं पंचसु उऊसु समइक्कंतेसु गिम्हकाल समयंसि जेट्ठामूले मासे पायवसंघं ससमुट्ठिएणं जाव संवट्टिएसु मिय-पसु-पक्खिसरीसिवेसु दिसोदिसिं विप्पलायमाणेसु तेहिं बहूहिं हत्थीहि य सद्धिं जेणेव मंडले तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
भावार्थ - मेघ! किसी एक समय जब क्रमशः पांचों ऋतुएँ बीत गईं, ग्रीष्म ऋतु का समय आया, तब जेठ के महीने में पेड़ों के परस्पर संघर्षण से दावाग्नि उत्पन्न हुई। वह सर्वत्र . फैलती गई। मृग, पशु, पक्षी, सरीसृप-रेंगने वाले प्राणी इधर-उधर भागने लगे। तब तुमने बहुत से हाथियों के साथ पूर्व रचित मण्डल की ओर जाने का विचार किया। (यह दूसरा गम - आलापक है।)
(१८२) तत्थ णं अण्णे बहवे सीहा य वग्घा य विगा य दीविया य अच्छा य तरच्छा य पारासरा य सरभा य सियाला विराला सुणहा कोला ससा कोकंतिया चित्ता चिल्लला पुव्व पविट्ठा अग्गिभय विद्या एगयओ बिलधम्मेणं चिट्ठति। तए णं तुम मेहा! जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि २ ता तेहिं बहहिं सीहेहिं जाव चिल्ललेहि य एगयओ बिलधम्मेणं चिट्ठसि।
शब्दार्थ - वग्घा - व्याघ्र, विगा - वृक-भेड़िया, दीविया - द्वीपी-चीते, अच्छा - रीछ-भालू, तरच्छा - व्याघ्र विशेष, पारासरा - वन्य जन्तु विशेष, सियाला - श्रृंगालगीदड़, विराला - जंगली बिलाव, सुणहा - जंगली कुत्ते, कोला - सूअर, ससा - खरगोश, कोकंतिया - लोमड़ियाँ, चित्ता - चीतल, चिल्लला - जंगली गधे, पुव्वपविट्ठा - पूर्व प्रविष्ट, अग्गिभयविद्या - अग्नि के भय से दौड़कर आए हुए, बिलधम्मेणं चिटुंति - बिल धर्म से स्थित हुए। . भावार्थ - उस मण्डल में दूसरे बहुत से शेर, बाघ, भेड़िए, चीते, भालू, तरच्छ, पारासर, सरभ (अष्टापद), गीदड़, वन बिलाव, जंगली, कुत्ते, सूअर, खरगोश, लोमड़ियाँ, चीतल, जंगली गधे अग्नि से भयभीत होकर दौड़ते हुए, जिसको जहाँ स्थान मिला, वहाँ सब
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