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________________ प्रथम अध्ययन - मेघकुमार का उद्वेग १४३ मेघकुमार का उद्वेग . (१६१) . जं दिवसं च णं मेहे कुमारे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए तस्स णं दिवसस्स पच्चावरण्हकालसमयंसि समणाणं णिग्गंथाणं अहाराइणियाए सेज्जासंथारएसु विभज्जमाणेसु मेहकुमारस्स दारमूले सेजासंथारए जाए यावि होत्था। तए णं समणा णिग्गंथा पुव्वरत्तावरत्त-काल-समयंसि वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणुजोगचिंताए य उच्चारस्स य पासवणस्स य अइगच्छमाणा य णिग्गच्छमाणा य अप्पेगइया मेहं कुमारं हत्थेहिं संघटुंति एवं पाएहिं सीसे पोट्टे कायंसि अप्पेगइया ओलंडेंति-अप्पेगइया पोलंडेंति अप्पेगइया पाय-रय-रेणुगुंडियं करेंति। एवं महालियं च णं रयणि मेहेकुमारे णो संचाएइ खणमवि अच्छिं णिमीलित्तए। शब्दार्थ - पच्चावरण्ह-कालसमयंसि - सायंकाल के समय, अहाराइणियाए - दीक्षा पर्याय के अनुक्रम से, विभज्जमाणेसु - विभाजन किए जाने पर, दार मूले - द्वार के समीप, पुव्वरत्तावरत्त-काल समयंसि - रात्रि के पूर्व और अन्तिम भाग में, परियट्टणाए - परिवर्तना पूर्वक पठित सूत्रों की आवृत्ति के लिए, धम्माणुजोगचिंताए - धर्म की व्याख्या पर चिंतन के निमित्त, अइगच्छमाणा - प्रवेश करते हुए, णिग्गच्छमाणा - निकलते हुए, अप्पेगइया - कतिपय, हत्थेहिं - हाथों से, संघटुंति - टकराते हैं, पोट्टे- पेट से, ओलंडेंति - लांघते हैं, पोलंडेंति - बार-बार लंघन करते हैं, पायरयरेणु गुंडियं - पैरों की धूल से धूसरित, महालियं रयणी - लम्बी रात में, अच्छिं - नेत्र, णिमीलित्तए - बंद करने के लिए। भावार्थ - जिस दिन मेघ कुमार मुंडित होकर अनगार धर्म में प्रव्रजित हुआ, उसी दिन सायंकाल दीक्षा पर्याय के अनुक्रम से साधुओं के शैय्या संस्तारकों का विभाजन किया गया तो मेघकुमार का शैय्या संस्तारक दरवाजे के नजदीक हुआ। रात्रि के प्रथम और अंतिम समय में वाचना, पृच्छना एवं परिवर्तना तथा धर्मानुयोग की चिंतना हेतु उच्चार-प्रस्रवण परठने के निमित्त कतिपय मुनि जब बाहर जाते, वापस लौटते तब मेघ कुमार के हाथों से टकरा जाते, किन्हीं के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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