________________
प्रथम अध्ययन - प्रव्रज्य
-
१३६
कुमुद - चंद्र से विकसित होने वाला श्वेत कमल, जलरएणं - जल के मैलेपन से-गंदले पानी से, जम्मण-जर-मरणाणं - जन्म, बुढ़ापा और मृत्यु, सिस्सभिक्खं - शिष्य रूप भिक्षा।
भावार्थ - मेघकुमार के माता-पिता उसको आगे किए हुए भगवान् महावीर के पास आए। तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा पूर्वक वंदन किया। वंदन कर वे यों बोले-भगवन्! मेघकुमार हमारा इकलौता पुत्र है, जो जीवन (प्राणों) में श्वासोच्छ्वास के समान प्रिय, हृदय के लिए आनंदप्रद तथा उदुम्बर-पुष्प की ज्यों दुर्लभ है। जैसे उत्पल, पद्म या कुमुद कीचड़ में उत्पन्न होता है किंतु कीचड़ या जल की गंदगी से उपलिप्त नहीं होता। उसी प्रकार काम-भोगों में जन्मा, भोगों में बड़ा हुआ, हमारा यह पुत्र काम-भोग रूप कालुष्य से अलिप्त है। देवानुप्रिय! वह संसार के जन्म, वृद्धावस्था और मृत्यु रूप भय से उद्विग्न है। वह आपके पास प्रव्रजित होकर अनगार धर्म स्वीकार करना चाहता है। हम आपको शिष्य रूप भिक्षा दे रहे हैं। आप इसे स्वीकार करें।
विवेचन - इस सूत्र में तथा पिछले कई सूत्रों में मेघकुमार का इकलौते पुत्र के रूप में जो उल्लेख हुआ है, वह माता धारिणी की दृष्टि से है क्योंकि राजा श्रेणिक के अनेक रानियाँ थीं, अनेक पुत्र थे। परंतु रानी धारिणी के मेघकुमार एक मात्र पुत्र था। इस सूत्र में माता-पिता दोनों मेघकुमार को भगवान् महावीर स्वामी के समक्ष इकलौते पुत्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह मातृ प्रधान उक्ति (कथन) है।
(१५७) तए णं से समणे भगवं महावीरे मेहस्स कुमारस्स अम्मापिऊहिं एवं वुत्ते समाणे एयमझें सम्म पडिसुणेइ। __तएणं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमइ २ त्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ।
.. 'शब्दार्थ - अवक्कमइ - अवक्रांत होता है-आता है, सयमेव - स्वयमेव-अपने आप ही, ओमुयइ- उतारता है। ___ भावार्थ - मेघकुमार के माता-पिता के इस कथन को श्रमण भगवान् महावीर स्वामी सम्यक् स्वीकार करते हैं। मेघकुमार भगवान् महावीर स्वामी के पास उत्तर-पूर्व दिशा भाग-ईशान कोण में उपस्थित होता है। स्वयं ही अपने आभरणों, मालाओं और अलंकारों को उतार देता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org