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________________ १३८ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र राग-द्वेष रूपी मल्लों को पछाड़ डालो। अप्रमत्त होकर उत्तम शुभ ध्यान द्वारा आठ कर्म रूपी शत्रुओं का मर्दन कर डालो। अज्ञानांधकार रहित सर्वोत्तम केवलज्ञान प्राप्त करो। शाश्वत, अविचल मोक्ष रूप परमपद को अधिगत (प्राप्त) करो। परीषहों की सेना को नष्ट कर डालो। परीषहों और उपसर्गों से निर्भय रहो। आपकी धर्म-साधना निर्विघ्न चलती रहे। यों कह कर वे बार-बार मंगलमय जय-जय शब्द का उद्घोष करने लगे। (१५५) तए णं से मेहे कुमारे रायगिहस्स णयरस्स मज्झमझेणं णिग्गच्छई, ... णिग्गच्छित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुरिससहस्स-वाहिणीओ सीयाओ पच्चोरुहइ। ___ भावार्थ - मेघकुमार राजगृह नगर के बीच से होता हुआ गुणशील चैत्य में पहुँचा, एक सहस्र पुरुषों द्वारा वहन की जाती शिविका-पालकी से नीचे उतरा। - (१५६) तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं पुरओ कटु जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति २ ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - एस णं देवाणुप्पिया! मेहे कुमारे अम्हं एगे पुत्ते इढे कंते जाव जीविय-ऊसासए हियय-णंदिजणए उंबरपुष्पं पिव दुल्लहे सवणयाए किमगं पुण' दरिसणयाए? से जहाणामए उप्पलेइ वा, पउमेइ वा, कुमुदेइ वा, पंके जाए जले संवडिए णोवलिप्पइ पंकरएणं, णोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव मेहे कुमारे कामेसु जाए भोगेसु संवुड्ढे णोवलिप्पड़ कामरएणं, णोवलिप्पइ भोगरएणं, एस णं देवाणुप्पिया! संसार भउव्विग्गे भीए जम्मण-जर-मरणाणं इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अम्हे णं देवाणुप्पियाणं सिस्सभिक्खं दलयामो। पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया! सिस्सभिक्खं। शब्दार्थ - उप्पल - नीलकमल, पउम - पद्म-सूर्य से विकसित होने वाला कमल, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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