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प्रथम अध्ययन - प्रव्रज्या की पूर्वभूमिका
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शब्दार्थ - सुद्धप्पावेसाई - शुद्ध एवं राजभवन में प्रवेश योग्य, संदिसह - आज्ञा प्रदान करें, करणिज्जं-करने योग्य, णिक्के - भलीभाँति, पक्खालेहि - प्रक्षालित करो, सेयास - श्वेत, चउप्फालाए- चार तह(पुट) युक्त, पोत्तीए - वस्त्र द्वारा, चउरंगुल-वज्जे - चार अंगुल छोड़कर, णिक्खमणपाउग्गे - दीक्षा के योग्य, अग्गकेसे- बढ़े हुए बालों को, कप्पेहिकाट दो।
__ भावार्थ - कौटुंबिक पुरुषों के माध्यम से राजा द्वारा बुलाए जाने पर, नाई बहुत ही प्रसन्न हुआ। उसने स्नान किया। नित्य-नैमित्तिक. क्रियाएँ तथा मंगलोपचार कर, उसने शुद्ध, मांगलिक वस्त्र पहने एवं अल्प भार वाले व बहुमूल्य आभूषण धारण किए तथा राजा श्रेणिक जहाँ था, वहाँ आया। राजा के समक्ष हाथ जोड़ कर, सिर झुकाकर, अंजलिपुट को मस्तक के चारों ओर घुमाता हुआ बोला-'देवानुप्रिय! जो मेरे द्वारा करणीय है, उस संबंध में आज्ञा दीजिए।'
.. तब राजा श्रेणिक ने नाई को इस प्रकार कहा - "देवानुप्रिय! जाओ सुगंधित सुरभिमय उत्तम जल से हाथ-पैर धो लो, चार तह किए हुए सफेद वस्त्र से मुँह को बांध लो तथा मेघकुमार के प्रव्रज्या योग्य चार अंगुल बालों को छोड़कर, शेष बढ़े हुए बालों को काट दो।" . - विवेचन - यहाँ पर चार अंगुल छोड़ कर के दीक्षा के योग्य बाल काटने का बताया गया है। इसका आशय यह है कि पूरे मस्तक में चार-चार अंगुल ऊंचाई जितने बाल रखें। इससे ज्यादा ऊंचाई बालों की जो थी उसको काट कर कम कर दिया। जिससे उन मस्तक पर रहे हुए वालों का दीक्षा के समय लोच हो सके। आगे के पाठ में मेघकुमार के दीक्षा के समय पंचमुष्ठिक लोच करना बताया है।
(१४०) - तए णं से कासवए सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ जाव हियए जाव पडिसुणेइ २ त्ता सुरभिणा गंधोदएणं हत्थपाए पक्खालेइ २ त्ता सुद्धवत्थेणं मुहं बंधइ २ त्ता परेणं जत्तेणं मेहस्स कुमारस्स चउरंगुलवज्जे णिक्खमण-पाउग्गे अग्ग केसे कप्पड़। . शब्दार्थ - पडिसुणेइ - स्वीकार करता है, परेणं जत्तेणं - अत्यंत सावधानी पूर्वक।
भावार्थ - राजा श्रेणिक द्वारा यों कहे जाने पर नाई मन में बड़ा हर्षित हुआ। राजा का आदेश स्वीकार किया। उसने सुगंधित जल से हाथ पैर धोए। शुद्ध वस्त्र से मुँह को बांधा और
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