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________________ प्रथम अध्ययन - भ० महावीर स्वामी का पदार्पण १०५ भावार्थ - उस काल-वर्तमान अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में, जब राजा श्रेणिक मगध का सम्राट था, भगवान् महावीर स्वामी तीर्थंकर परंपरा के अनुरूप चलते हुए, ग्रामानुग्राम सुखपूर्वक विचरण करते हुए राजगृह नगर के गुणशील नामक चैत्य में पधारे। वहाँ यथोचित स्थान ग्रहण कर अवस्थित हुए। तए णं से रायगिहे णयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर० महया बहुजण सद्देइ वा जाव बहवे उग्गा भोगा जाव रायगिहस्स णयरस्स मज्झमज्झेणं एगदिसिं एगाभिमुहा णिग्गच्छंति, इमं च णं मेहे कुमारे उप्पिंपासायवरगए फुटमाणेहिं मुयंग-मत्थएहिं जाव माणुस्सए कामभोगे भुंजमाणे रायमग्गं च आलोएमाणे एवं च णं विहरई। शब्दार्थ - बहुजण सद्देइ - बहुत से लोगों के शब्द-कोलाहल, उग्गा - उग्र-भगवान् ऋषभदेव द्वारा अवस्थापित आरक्षक वंशोत्पन्न, भोगा - भगवान् ऋषभदेव द्वारा अवस्थापित उच्चपदस्थ भोग कुलोत्पन्न, आलोएमाणे - अवलोकन करता हुआ। . भावार्थ - उस समय का प्रसंग है, राजगृह नगर के चौराहों राजमार्गों, आदि में बहुत से लोगों का शब्द-कोलाहल हो रहा था। अनेक उग्र कुल एवं भोगकुलोत्पन्न तथा अन्य सामंत आदि विशिष्ट जन एक दिशा की ओर गमनोन्मुख थे। उस समय मेघकुमार अपने प्रासाद के ऊपर स्थित था। मृदंगें बज रही थीं, संगीत चल रहा था। वह उनका आनंद लेता हुआ, राजमार्ग का अवलोकन कर रहा था। (११०) तए णं से मेहे कुमारे ते बहवे उग्गे भोगे जाव एगदिसाभिमुहे णिग्गच्छमाणे पासड़, पासित्ता कंचुइज-पुरिसं सद्दावेइ, सावेत्ता एवं वयासी-“किण्णं भो देवाणुप्पिया! अज रायगिहे णयरे इंदमहेइ वा खंदमहेइ वा एवं रुद्द-सिववेसमण-णाग-जक्ख-भूय-णई-तलाय-रुक्ख-चेइय-पव्वय-उजाण-गिरिजत्ताइ वा जओ णं बहवे उग्गा भोगा जाव एगदिसिं एगाभिमुहा णिग्गच्छंति?" शब्दार्थ - इंदमहेइ - इन्द्रमहोत्सव, खंदमहेइ - स्कंद-स्वामी कार्तिकेय महोत्सव, रुद्दरुद्र, सिव- महादेव, वेसमण - वैश्रमण - कुबेर, णाग - नागदेव, जक्ख - यक्ष, भूय - भूत, णई - नदी, तलाय - तड़ाग - तालाब, जत्ताइ - यात्रा आदि, जओ - जिसके कारण। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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