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प्रथम अध्ययन नेोपहार
स्नेहोपहार
(१०५)
तए णं तस्स मेहस्स अम्मापियरो इमं एयारूवं पीइदाणं दलयंति-अट्ठ हिरण्णकोडीओ अट्ठ सुवण्णकोडीओ गाहाणुसारेण भाणियव्वं जाव पेसणकारियाओ अण्णं च विपुलं धण-कणग- रयण-मणि- मोत्तिय संख-सिलप्पवाल-रत्तरयण-संतसार - सावएजं अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउ पकामं भोक्तुं पकामं परिभाएउ । शब्दार्थ - अट्ठ हिरण्णकोडीओ आठ करोड़ रजत मुद्राएं, अड़ सुवण्ण कोडीओ आठ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं, गाहाणुसारेण - गाथाओं के अनुसार, भाणियव्वं चाहिए, पेसणकारियाओ- प्रेषणकारिका कार्य सम्पादन हेतु बाहर भेजी जाने वाली सेविकाएं अथवा धान्य आदि पीसने वाली सेविकाएँ, अण्णं च अन्य और भी, पवाल मूंगा, पर्याप्त,
कथन करना
रत्तरयण लाल रतन, संतसार-सावएजं सात तक, कुलवंसाओ - पीढ़ियां, पकामं
उत्तम सार
भूत द्रव्य, अलाहिं
अत्यन्त, दाउं- देने के लिए,
आसत्तमाओ भोत्तुं - भोगने के लिए, परिभाएउं - परिभाग हेतु, बन्धु-बान्धवों में विभक्त करने हेतु ।
भावार्थ - मेघकुमार के माता-पिता ने इन नव परिणीता आठ वधुओं को आठ करोड़ मुद्रा, आठ करोड़ स्वर्ण मुद्रा, पेसणकारिका आदि सेविकाएं तथा और भी अत्यधिक धन, स्वर्ण, रत्न, मणि मोती, शंख, मूंगें, लालें आदि सारभूत पर्याप्त द्रव्य स्नेहोपहार में दिया, जो उनके लिए सात पीढ़ियों तक दान, भोग तथा बन्धु बान्धवों में विभाजन वितरण की दृष्टि से पर्याप्त था । (यहां अन्यत्र टीका आदि में प्रतिपादित गाथाओं के अनुसार स्नेहोपहार विषयक विस्तृत वर्णन ग्राह्य है । ) ।
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(१०६)
तणं से मेहे कुमारे एगमेगाए भारियाए एगमेगं हिरण्णकोडिं दलयइ एगमेगं सुवण्णकोडिं दलयइ जाव एगमेगं पेसणकारिं दलयइ अण्णं च विउलं धणकणग जाव परिभाएउ दलयइ ।
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