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प्रथम अध्ययन - बहत्तर कलाओं के नाम
णालियाखेड ६८. पत्तच्छेज्जं ६९. कडगच्छेज्जं ७०. सज्जीवं ७१. णिज्जीवं ७२. सउणरुअमिति।
शब्दार्थ - वे कलाएं इस प्रकार हैं - १. लेहं - लेख-लिपिज्ञान, २. गणियं - अंकगणित, रेखा गणित, बीज गणित आदि का अध्ययन, ३. रूवं - चित्रांकन, ४. णर्ट - नाट्य, ५. गीयं - गान-विद्या, ६. वाइयं - वाद्य वादन, ७. सरगयं - संगीत के षड्ज, ऋषभ आदि स्वरों का ज्ञान, ८. पोक्खरगयं - मृदंग विषयक ज्ञान, ६. समताल - गीतानुरूप ताल प्रयोग का बोध, १०. जूयं- द्यूत, ११. जणवाय - लोगों के साथ हार-जीत मूलक वाद-विवाद, १२. पासयं - पासा-द्यूत क्रीड़ा का उपकरण विशेष १३. अट्ठावयं - चौपड़, १४. पोरेकच्चं - नगर-रक्षा मूलक कार्य, १५. दगमट्टियं - जल एवं मिट्टी के संयोग से वस्तु का निर्माण, १६. अण्णविहिं - अन्नोत्पादन एवं पाकविधि का ज्ञान, १७. पाणविहिं - पानी को उत्पन्न संस्कारित और शुद्ध करने का ज्ञान, १८. वत्थविहिं - वस्त्र विषयक ज्ञान, १६. विलेवणविहिं - चंदनादि चर्चनीय पदार्थों का ज्ञान, २०. सयणविहिं - शैय्या एवं शयन विषयक ज्ञान, २१. अज्जं - आर्या आदि मात्रिक छंदों का बोध २२. पहेलियं - प्रहेलिका बनाना, सुलझाना २३. मागहियं - मागधी भाषा में पद-रचना २४. गाहं- प्राकृत में गाथा आदि छंदो में पद्य निर्माण २५. गीइयं - गीतिका २६. सिलोयं - अनुष्टप आदि छंद में श्लोक बनाना २७. हिरण्णजुत्तिं - रजत निर्माण २८. सुवण्णजुत्तिं - स्वर्ण निर्माण २६. चुण्णजुत्तिकाष्ठादि वनौषधियों के समुचित संयोजन से विविध रसायनात्मक निर्माण ३०. आभरणविहिं - आभरण विषयक ज्ञान ३१. तरुणी पडिकम्मं - तरुणी परिकर्म-युवा स्त्री के सौन्दर्य वर्द्धन एवं प्रसाधन का ज्ञान ३२. इथिलक्खणं - स्त्री के सामुद्रिक शास्त्रोक्त शुभाशुभ लक्षणों का ज्ञान ३३. पुरिसलक्खणं - पुरुष के शुभाशुभ लक्षणों का बोध ३४. हयलक्खणं - अश्व लक्षण ३५. गय लक्खणं - गज लक्षण ३६. गोण लक्खणं - गो-गाय-बैल लक्षण ३७. कुक्कुडलक्खणं- कुक्कट लक्षण ३८. छत्त लक्खणं - छत्र लक्षण ३६. दंडलक्खणं - दण्ड लक्षण ४०. असिलक्खणं- खड्ग लक्षण ४१. मणिलक्खणं - मणि लक्षण ४२. कागिणी लक्खणं - चक्रवर्ती के काकणि नामक रत्न विशेष के लक्षण ४३. वत्थुविजं - वास्तु विद्याभवन निर्माण संज्ञक विद्या ४४. खंधारमाणं - सेना की छावनी (पड़ाव) का बोध ४५. णगरमाणं - नगर निर्माण-ज्ञान ४६. वूहं - व्यूह (मोर्चा) सेना का विशेष आकार में परिस्थापन ४७. पडिवूहं - प्रतिद्वंदियों के व्यूह से रक्षा हेतु व्यूह-रचना ४८. चारं - सैन्य
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