________________
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
में मेघ दर्शन का दोहद उत्पन्न हुआ, इसलिए इस बालक को 'मेघकुमार' नाम दें। इस प्रकार माता-पिता ने उस शिशु का गुणानुरूप, गुण निष्पन्न मेघकुमार नाम रखा ।
बालक का लालन-पालन
ह२
(६)
तणं से मेहे कुमारे पंचधाई - परिग्गहिए तं जहा - खीरधाईए, मंडणधाईए, मज्जणधाईए, कीलावणधाईए, अंकधाईए अण्णाहि य बहूहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहिं वामणि- वडभि - बब्बरि-वउसि - जोणिय - पल्हविय - ईसिणिय धोरुगिणी - ला सिय- लउसिय-दमिलि सिंहलि- आरबि- पुलिंदि पक्कणिबहलि - मुरुंडि - सबरि-पारसीहिं णाणा देसीहिं विदेस - परिमंडियाहिं इंगियचिंतिय-पत्थिय-वियाणियाहिं सदेस - णेवत्थ-गहिय - वेसाहिं णिउण कुसलाहिं विणीयाहिं चेडियाचक्कवाल - वरिसधर-कंचुइज्ज - महयरगवंद - परिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे, अंकाओ अंकं परिभुज्जमाणे- परिगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे रम्मंसि मणिकोट्टिम-तलंसि परिमिज्जमाणे २ णिव्वायणिव्वाघायंसि गिरि-कंदर - मल्लीणेव चंपगपायवे सुहं सुहेणं वइ ।
शब्दार्थ - पंचधाईपरिग्गहिए - पाँच धायों द्वारा परिगृहीत, खीर - दूध, कीलावण खेल कराना, अंक - गोद, अण्णाहि - अन्य, खुज्जा - कुबड़ी, चिल्लाइया - किरात देश में उत्पन्न, वामणि - बौनी, वडभि - विकलांग, चेडिया चक्कवाल दासी समूह, वरिसधरप्रयोग द्वारा नपुंसक किए हुए पुरुष, कंचुइज्ज - अंतःपुर के वृद्ध कर्मचारी, महयर - अन्तःपुर के कार्यों की देखभाल करने वाले, परिक्खित्ते - घिरा हुआ, साहरिज्जमाणे - लिया जाता हुआ, परिभुज्जमाणे- सुखानुभव करता हुआ, परिगिज्जमाणे गा-गाकर बहलाया जाता हुआ, उवलालिज्जमाणे - लाड़-प्यार से खिलाया जाता हुआ, मणिकोट्टिमतलंसि - मणियों से जुड़े हुए महल के आंगन पर, परिमिज्जमाणे - चलाया जाता हुआ, णिव्वाय - निर्वात - वायु रहित, णिव्वाघ बाधा रहित, अल्लीणे स्थित, पायवे पादप, वृक्ष, वड
बढ़ता है।
भावार्थ
दूध पिलाने वाली, वस्त्र - आभूषण आदि पहनाने वाली, स्नान कराने वाली,
Jain Education International
-
1
For Personal & Private Use Only
-
-
www.jainelibrary.org