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________________ ६०. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र + + + + + शब्दार्थ - सइएहि -. सैकड़ों, साहस्सिएहि - हजारों, सयसाहस्सिएहि - लाखों, जाएहि - द्रव्यराशियों द्वारा, दाएहि भागेहि - दान योग्य भागों द्वारा, दलयमाणे - देते हुए, पडिच्छेमाणे - भेंट रूप में स्वीकार करते हुए। भावार्थ - फिर राजा श्रेणिक बाहरी सभा-भवन में आया। पूर्वाभिमुख होकर श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठा। उसने सैंकड़ों, हजारों एवं लाखों की द्रव्य राशि का संविभागानुरूप दान किया। अधीनस्थ राजाओं, सामंतों एवं श्रेष्ठिजनों द्वारा दिए गए उपहारों को ग्रहण किया। नवजात शिशु के संस्कार (६३) तए णं तस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जायकम्मं करेंति २त्ता बिइयदिवसे जागरियं करेंति २ त्ता तइए दिवसे चंदसूर दंसणियं करेंति २ त्ता एवामेव णिव्वत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसाहदिवसे विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति २ त्ता मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणं बलं च बहवे गणणायग-दंडणायग जाव आमंति। शब्दार्थ - पढमे - प्रथम, जायकम्मं - जात कर्म-नाल काटना, बिइय - दूसरे, जागरियं- रात्रि जागरण, तइए - तीसरे, चंदसूरदंसणियं - चन्द्रमा और सूर्य के दर्शन, णिव्वत्ते - संपन्न, असुइ - अशुद्ध, उवक्खडावेंति - तैयारी करवाते हैं, णाइ - पारिवारिकजन, णियग - पुत्रादि, संबंधि - ससुराल पक्ष के व्यक्ति, परिजणं - दास-दासी आदि सेवक-वृंद, आमंति - आमंत्रित करते हैं। भावार्थ - माता-पिता ने बालक के जन्मोपरांत पहले दिन उसका जात-कर्म किया, दूसरे दिन जागरिका तथा तीसरे दिन चंद्र-सूर्य के दर्शन कराए। इस प्रकार अशुचि जातकर्मादि संस्कार संपन्न हुए। बारहवें दिन बड़े परिमाण में अशन, पान, खाद्य एवं स्वाद्य पदार्थ तैयार करवाए। वैसा कर मित्रों, बंधु-बांधवों, पुत्रादि निकटतम पारिवारिकजनों, अन्यान्य संबंधियों, सेवकसेविकाओं, सैनिकों, गणनायकों, दण्डनायकों आदि को आमंत्रित किया। (६४) तओपच्छाण्हायाकयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्तासव्वालंकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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