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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
५, हंसगब्भाणं ६, पुलगाणं ७, सोगंधियाणं ८, जोइरसाणं ६, अंकाणं १०, अंजणाणं ११, रययाणं १२, जायरूवाणं १३, अंजण पुलगाणं १४, फलिहाणं १५, रिट्ठाणं १६, अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ २ त्ता अहासुहुमे पोग्गले परिगिण्हइ २ त्ता अभयकुमार-मणुकंपमाणे देवे पुव्वभव-जणियणेह-पीइबहुमाण-जायसोगे तओ विमाणवर-पुंडरीयाओ रयणुत्तमाओ धरणियल-गमण-तुरिय-संजणियगमणपयारो वाघुण्णिय-विमल-कणग-पयरग-वडिंसग-मउडुक्कडाडोव, दंसणिज्जो अणेगमणि-कणगरयण-पहकर-परिमंडिय-भत्तिचित्त-विणिउत्तमणुगुणजणियहरिसे खोलमाण-वरललिय-कुंडलुज्जलिय-वयण-गुण-जणियसोमरूवे उदिओ विव कोमुदीणिसाए सणिच्छरंगार उजलिय-मज्झभागत्थे णयणाणंदो सरयचंदो दिव्वोसहि-पज्जलुज्जलिय-दसणाभिरामो उउलच्छि-समत्त-जायसोहे पइट्ठ-गंधुद्धयाभिरामे मेरुरिव णगवरो विउव्वियविचित्तवेसे दीवसमुद्दाणं असंखपरिमाण-णामधेज्जाणं मज्झयारेणं वीइवयमाणो उज्जोयंतो पभाए विमलाए जीवलोयं रायगिहं पुरवरं च अभयस्स य तस्स पासं ओवयइ दिव्वरूवधारी।
शब्दार्थ - रिट्ठाणं - श्याम रत्न, अहाबायरे - यथा बादर-सार रहित पुद्गलों का, परिसाडेइ - परिशाटन-परित्याग करता है, अहासुहुमे - यथा सूक्ष्म-सारभूत पुद्गल, अणुकप्पमाणे- अनुकंपा करता हुआ, विमाणवरपुंडरियाओ - श्वेत कमल सदृश अति उत्तम विमान, वाघुण्णिय- व्याघूर्णित-हिलते हुए, पयरग - पात (सोने के पतले पात), उक्कडाडोवउत्कट आटोप-मन को आकर्षित करने वाली विशिष्ट सज्जा, विणिउत्त - विनियुक्त-धारण किए हुए, अणुगुण - अनुगण-करघनी, पेंखोलमाण - दोलायमान-हिलते हुए, कोमुदीणिसाए - कार्तिक पूर्णिमा, सणिच्छरंगार- शनि और मंगल, सरयचंदो - शरद् ऋतु का चंद्रमा, दिव्वोसहिदिव्यौषधियां-जड़ी बूंटियां, पज्जलुज्जलिय - प्रज्वलित, लच्छि - लक्ष्मी, पइट्ठ - प्रकृष्टउत्तम, उद्धय - सर्वत्र फैली हुई, विउव्वियविचित्तवेसे - वैक्रियलब्धि द्वारा रचित विचित्र वेश युक्त, दीवसमुद्दाणं - द्वीपों और समुद्रों को, णामधेज्जाणं - नाम धारण करने वाले, वीइवयमाणो - दिव्यगति से चलता हुआ, ओवयइ - अवतरित होता है।
भावार्थ - सौधर्म कल्पवासी देव ने हीरे, वैडूर्य, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, हंसगर्भ, पुलक,
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