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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
शब्दार्थ - पडिविसज्जेइ - विदा किया।
भावार्थ - अभयकुमार द्वारा यों कहे जाने पर राजा श्रेणिक हर्षित और आनंदित हुआ। अभयकुमार का सत्कार, सम्मान किया और विदा किया।
दोहदपूर्ति हेतु देवाराधना
तए णं से अभए कुमारे सक्कारिए सम्माणिए पडिविसज्जिए समाणे सेणियस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छड़, उवागच्छित्ता सीहासणे णिसण्णे।
भावार्थ - इस प्रकार सम्मानित एवं सत्कारित होकर अभयकुमार श्रेणिक राजा के यहाँ से चला और अपने भवन में आया, सिंहासन पर बैठा।
तए णं तस्स अभयकुमारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्थाणो खलु सक्का माणुस्सएणं उवाएणं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अकाल-दोहल-मणोरह-संपत्तिं करित्तए णण्णत्थ दिव्वेणं उवाएणं। अत्थि णं मज्झ सोहम्म-कप्पवासी पुव्वसंगइए देवे महिहिए जाव महासोक्खे। तं सेयं खलु मम पोसह-सालाए पोसहियस्स बंभयारिस्स उम्मुक्कमणि-सुवण्णस्सववगयमाला-वण्णग-विलेवणस्स णिक्खित्तसत्थ-मुसलस्स एगस्स अबीयस्स दमसंथारो-वगयस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता पुव्वसंगइयं देवं मणसी-करेमाणस्स विहरित्तए। तए णं पुव्वसंगइए देवे मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयासवे अकालमेहेसु दोहलं विणेहिए। • शब्दार्थ - सक्का - शक्य-होने योग्य, णण्णस्थ - नान्यत्र-इसके बिना संभव नहीं, दिव्य- देव विषक, सोहम्म-कप्पवासी - सौधर्म कल्पवासी, पुव्वसंगइए - पूर्वसंगतिकपूर्वजन्म में संबद्ध-मित्र, महिहिए - अत्यधिक ऋद्धि युक्त, ववगय - व्यपगत-छोड़ कर,
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