SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय प्रतिपत्ति - सुधर्मा सभा का वर्णन भावार्थ - उस सुधर्मा सभा में छह हजार गोमानसिका-शय्या रूप स्थान कही गई हैं वे इस प्रकार हैं - पूर्व में दो हजार, पश्चिम में दो हजार, दक्षिण में एक हजार और उत्तर में एक हजार। उन गोमानसिका में बहुत से सोने चांदी के फलक-पाटिया हैं (खूटियां जिसमें से निकली है, उसके नीचे आये हुए पाटियों को फलक कहते हैं) उन फलकों में बहुत से वज्रमय नागदंतक (खूटियाँ) हैं, उन वज्रमय नागदंतकों में बहुत से चांदी के सींके (छींके) हैं। उन रजतमय छींकों में बहुत-सी वैडूर्य रत्न की धूपघटिकाएं कही गई हैं। वे धूपघटिकाएं काले अगर, श्रेष्ठ कुंदुरुक्क और लोभान के धूप की नाक और मन को तृप्ति देने वाली सुगंध से आसपास के क्षेत्र को पूरित करती हुई स्थित हैं। . उस सुधर्मा सभा में बहुसमरमणीय भूमिभाग कहा गया है यावत् मणियों का स्पर्श, भीतरी छत, पद्मलता आदि के विविध चित्र का वर्णन करना चाहिये यावत् वह भूमिभाग तपनीय स्वर्णमय है, स्वच्छ है और प्रतिरूप है। ___तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता, साणं मणिपेढिया दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई जाव पडिरूवा॥ तीसे णं मणिपेढियाए उप्पिं एत्थ णं माणवए णामं चेइयखंभे पण्णत्ते अट्ठमाइं जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं अद्धकोसं उव्वेहेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं छकोडीए छलंसे छव्विग्गहिए वइरामयवट्टलट्ठसंठिए एवं जहा महिंदझयस्स वण्णओ जाव पासाईए॥ तस्स णं माणवगस्स चेइयखंभस्स उवरि छक्कोसे ओगाहित्ता हेट्ठा वि छक्कोसे वज्जेत्ता मज्झे अद्धपंचमेसु जोयणेसु एत्थ णं बहवे सुवण्णरुप्पमया फलगा पण्णत्ता, तेसु णं सुवण्णरुप्पमएसु फलएसु बहवे वइरामया णागदंता पण्णत्ता, तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता॥ तेसु णं रययामयसिक्कएसु बहवे वइरामया गोलवट्टसमुग्गका पण्णत्ता, तेसु णं वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहवे जिणसकहाओ संणिक्खित्ताओ चिटुंति, जाओ णं विजयस्स देवस्स अण्णेसिं च बहूणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ वंदणिज्जाओ पूयणिज्जाओ सक्कारणिज्जाओ सम्माणणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जाओ। माणवगस्स णं चेइयखंभस्स उवरि अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता॥ कठिन शब्दार्थ - माणवगस्स चेइय खंभस्स - माणवक नामक चैत्य स्तंभ-सुधर्मा सभा में आया हुआ एक विशिष्ट स्तंभ। जिणसकहाओ - जिनसक्थाएं-पृथ्वीकाय की बनी हुई शाश्वत दाढाएं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy