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जीवाजीवाभिगम सूत्र
कठिन शब्दार्थ - तिसोवाणपडिरूवगाणं - त्रिसोपान प्रतिरूपक-पुष्करणियों में प्रवेश करने के पगथिये (सीढ़ियाँ), मणोगुलिया - मनोगुलिका-गोमानसिका के नीचे की पीठिका (चबुतरा) , फलगा- फलक-पाटिया-खूटियां जिसमें से निकली है, उसके नीचे आये हुए पाटियों को फलक कहते हैं, णागदंतगा - नागदंतक-खूटिया, तवणिजलंबूसगा - सोने के लम्बूसक-पेंडल वाली।
भावार्थ - उन महेन्द्र ध्वजों के ऊपर आठ आठ मंगल, ध्वजाएं और छत्रातिछत्र हैं।
उन महेन्द्र ध्वजों के आगे तीन दिशाओं में तीन नन्दा पुष्करिणियां हैं। वे नन्दा पुष्करिणियां साढे बारह योजन लम्बी हैं, सवा छह योजन की चौड़ी और दस योजन की ऊंडी हैं, स्वच्छ हैं, मृदु हैं इत्यादि पुष्करिणी का सारा वर्णन कह देना चाहिये। वे प्रत्येक पुष्करिणियां पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से घिरी हुई हैं। पद्मवरवेदिका और वनखण्ड का वर्णन समझ लेना चाहिये यावत् वे पुष्करिणियां दर्शनीय यावत् प्रतिरूप हैं। उन पुष्करिणियों की तीन दिशाओं में अलग अलग त्रिसोपानप्रतिरूपक (उन पुष्करणियों में प्रवेश करने के पगथिये-सीढिये)कहे गये हैं। उन त्रिसोपानप्रतिरूपकों का वर्णन कह देना चाहिये। तोरणों का वर्णन यावत् छत्रातिछत्र हैं।
उस सुधर्मा सभा में छह हजार मनोगुलिकाएं-गोमानसिका के नीचे की पीठिका (चबूतरे) कही गई हैं वे इस प्रकार हैं - पूर्व में दो हजार, पश्चिम में दो हजार, दक्षिण में एक हजार और उत्तर में एक हजार। उन मनोगुलिकाओं में बहुत से सोने चांदी के फलक-पाटिये हैं। उन सोने चांदी के फलकों में बहुत से वज्रमय नागदंतक (खंटियाँ) हैं। उन वज्रमय नागदंतकों में बहुत सी काले सूत में पिरोई हुई गोल और लटकती हुई पुष्पमालाओं के समुदाय हैं यावत् सफेद डोरे में पिरोई हुई गोल और लटकती हुई पुष्पमालाओं के समुदाय हैं। वे पुष्पमालाएं सोने के लम्बूसक-पेंडल वाली हैं यावत् सब दिशाओं को सुगंध से पूरित करती हुई स्थित है। .....
सभाए णं सुहम्माए छ गोमाणसीसाहस्सीओ पण्णत्ताओ तंजहा-पुरस्थिमेणं दो साहस्सीओ, एवं पच्चत्थिमेणवि दाहिणेणं सहस्सं एवं उत्तरेणवि, तासु णं गोमाणसीसु बहवे सुवण्णरुप्पमया फलगा पण्णत्ता जाव तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कया पण्णत्ता, तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वेरुलियामईओ धूवघडियाओ पण्णत्ताओ, ताओ णं धूवघडियाओ कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्क . जाव घाणमणणिव्वुइकरेणं गंधेणं सव्वओ समंता आपूरेमाणीओ चिटुंति।
सभाए णं सुहम्माए अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीणं फासो उल्लोया पउमलयभत्तिचित्ता जाव सव्वतवणिज्जमए अच्छे जाव पडिरूवे॥१३७॥
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