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ततीय प्रतिपत्ति - विजया राजधानी का वर्णन
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आयरक्खदेवसाहस्सीणं विजयस्स णं दारस्स विजयाए रायहाणीए अण्णेसिं च बहूणं विजयाए रायहाणीए वत्थव्वगाणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं जाव दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-विजए दारे विजए दारे, अदुत्तरं च णं गोयमा! विजयस्स णं दारस्स सासए णामधेजे पण्णत्ते जण्ण कयाइ (णासी ण कयाइ) णत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ जाव अवट्ठिए णिच्चे विजए दारे॥१३४॥
भावार्थ - हे भगवन् ! विजयद्वार को विजयद्वार क्यों कहा जाता है ?
हे गौतम! विजयद्वार में विजय नामक महर्द्धिक, महाद्युति वाला यावत् महान् प्रभाव वाला और एक पल्योपम की स्थिति वाला देव रहता है। वह चार हजार सामानिक देवों, चार सपरिवार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात अनीकों, सात अनीकाधिपतियों और सोलह हजार आत्मरक्षक देवों का, विजयद्वार का, विजय राजधानी का और अन्य बहुत सारे विजय राजधानी के निवासी देव-देवियों का आधिपत्य करता हुआ यावत् दिव्य भोगों को भोगता हुआ विचरता है। इसलिये हे गौतम! विजयद्वार को विजयद्वार कहा जाता है।
हे गौतम! विजयद्वार का यह नाम शाश्वत है। यह पहले नहीं था ऐसा नहीं, वर्तमान में नहीं, ऐसा नहीं और भविष्य में कभी नहीं होगा, ऐसा भी नहीं यावत् यह अवस्थित और नित्य है।
विवेचन - उपर्युक्त मूल पाठ में सामानिक देवों से आत्मरक्षक देवों को चार गुणा बताया है। इसका कारण यह है कि आत्म रक्षक देव चारों दिशाओं को घेरे हुए होते हैं, अत: वे चारों दिशाओं में पूरा क्षेत्र भर देते हैं। जिससे कि किसी भी दिशा से कोई भी अशुभ घटना घटित न हो।
- विजया राजधानी का वर्णन कहि णं भंते! विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पण्णत्ता?
गोयमा! विजयस्स ण दारस्स पुरथिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीइवइत्ता अण्णमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पण्णत्ता, बारस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं सत्ततीसजोयणसहस्साइं णव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ता॥ सा णं एगेणं पागारेणं सव्वओ समंता संपरिक्ख़ित्ता॥ से णं पागारे सत्ततीसं जोयणाई अद्धजोयणं च उठें उच्चत्तेणं मूले अद्धतेरस जोयणाइं विक्खंभेणं मज्झेत्थ सक्कोसाइं छजोयणाई विक्खंभेणं उप्पिं तिणि सद्धकोसाइं जोयणाई
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