SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय प्रतिपत्ति - जंबूद्वीप के द्वारों का वर्णन ६१ कठिन शब्दार्थ - भोमा - भौम-मंजिल (मकान का खण्ड विशेष), भद्दासणा - भद्रासन। भावार्थ - उस विजयद्वार के आगे नौ भौम कहे गये हैं। उन भौमों के अंदर एकदम समतल और रमणीय भूमिभाग कहे गये हैं इत्यादि सारा वर्णन पूर्वानुसार यावत् मणियों के स्पर्श तक कह देना चाहिये। उन भौमों की भीतरी छत पर पद्मलता यावत् श्यामलताओं के विविध चित्र बने हुए हैं यावत् वे स्वर्णमय हैं, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। उन भौमों के एकदम मध्यभाग में जो पांचवां भौम है उस भौम के ठीक मध्य भाग में एक बड़ा सिंहासन कहा गया है, उस सिंहासन का वर्णन, देवदूष्य का वर्णन यावत् वहां अंकुशों में मालाएं लटक रही हैं, यह सब पूर्वानुसार कह देना चाहिए। उस सिंहासन के पश्चिम-उत्तर (वायव्य कोण) में, उत्तर में. उत्तरपर्व (ईशान कोण) में विजय देव के चार हजार सामानिक देवों के चार हजार भद्रासन कहे गये हैं। उस सिंहासन के पूर्व में विजयदेव की चार सपरिवार अग्रमहिषियों के चार भद्रासन कहे गये हैं। उस सिंहासन के दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) में विजयदेव की आभ्यंतर परिषद् के आठ हजार देवों के आठ हजार भद्रासन कहे गये हैं। उस सिंहासन के दक्षिण में विजयदेव की मध्यम परिषद् के दस हजार देवों के दस हजार भद्रासन कहें गये हैं। उस सिंहासन के दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) में विजयदेव की बाह्य परिषद् के बारह हजार देवों के बारह हजार भद्रासन कहे गये हैं। ... विवेचन - जम्बूद्वीप के अंदर की तरफ विजय दरवाजे के दोनों तरफ नौ-नौ खण्ड वाले दो प्रासादावतंसक हैं। दरवाजों के अति निकट दोनों तरफ सामने होने से यहां पर इनके लिए 'पुरओ' शब्द कहा है। तथा समवायांग सूत्र में दोनों तरफ होने से बाहा पर कह दिया है। भौम-मकान के खण्ड (मंजिल) को कहते हैं। इनकी ऊंचाई ८ योजन की एवं लम्बाई चौड़ाई तदनुरूप अर्थात् दरवाजे की अपेक्षा आधी या आधी से कुछ अधिक (दो योजन लगभग) समझना चाहिये। दोनों तरफ पांचवें भौम में उसका दरबार लगता है उसमें विजयदेव भी रहता है। अन्य भौमों में दोनों तरफ में भद्रासन आदि समझना चाहिये। तस्स णं सीहासणस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स सत्तण्हं अणियाहिवईणं सत्त भद्दासणा पण्णत्ता, तस्स णं सीहासणस्स पुरथिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस.भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तंजहा-पुरथिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, एवं चउसुवि जाव उत्तरेणं चत्तारि साहस्सीओ, अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं पत्तेयं भद्दासणा पण्णत्ता॥ १३२॥ भावार्थ - उस सिंहासन के पश्चिम में विजय देव के सात अनीकाधिपतियों-सेनापतियों के सात Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy