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________________ ६० जीवाजीवाभिगम सूत्र .ruarterroreroinorrorrorer.0000r.reverroritterroworritter विजए णं दारे अट्ठसयं चक्कज्झयाणं अट्ठसय मिगज्झयाणं अट्ठसयं गरुडझयाणं अट्ठसयं विगज्झयाणं (अट्ठसयं रुरुयज्झयाणं) अट्ठसयं छत्तज्झयाणं अट्ठसयं पिच्छज्झयाणं अट्ठसयं सउणिज्झयाणं अट्ठसयं सीहज्झयाणं अट्ठसयं उसभज्झयाणं अट्ठसयं सेयाणं चउविसाणाणं णागवरकेऊणं एवामेव सपुव्वावरेणं विजयदारे आसीयं केउसहस्सं भवइत्ति मक्खायं॥ कठिन शब्दार्थ - चक्कज्झयाणं - चक्र से अंकित ध्वजाएं। भावार्थ - उस विजय द्वार पर एक सौ आठ चक्र से अंकित ध्वजाएं, एक सौ आठ मृग से. अंकित ध्वजाएं, एक सौ आठ गरुड से अंकित ध्वजाएं, एक सौ आठ वृक (भेडिया) से अंकित ध्वजाएं, (एक सौ आठ रुरु-मृगविशेष से अंकित ध्वजाएं) एक सौ आठ छत्रांकित ध्वजाएं, एक सौ आठ पिच्छ से अंकित ध्वजाएं, एक सौ आठ शकुनि से अंकित ध्वजाएं, एक सौ आठ सिंह से अंकित ध्वजाएं, एक सौ आठ वृषभ से अंकित ध्वजाएं और एक सौ आठ सफेद चार दांत वाले हाथी से अंकित ध्वजाएं-इस प्रकार आगे पीछे सब मिला कर एक हजार अस्सी ध्वजाएं विजयद्वार पर कही गई है। ऐसा मैंने और अन्य तीर्थंकरों ने कहा है। विजए णं दारे णव भोमा पण्णत्ता, तेसि णं भोमाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता जाव मणीणं फासो, तेसि णं भोमाणं उप्पिं उल्लोया पउमलया जाव सामलयाभत्तिचित्ता जाव सव्वतवणिज्जमया अच्छा जाव- पडिरूवा, तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभाए जे से पंचमे भोमे तस्स णं भोमस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगे महं सीहासणे पण्णत्ते, सीहासणवण्णओ विजयदूसे जाव अंकुसे जाव दामा चिटुंति, तस्स णं सीहासणस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स चउण्हं सामाणियसहस्साणं चत्तारि भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तस्स णं सीहासणस्स पुरच्छिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं चत्तारि भद्दासणा पण्णत्ता, तस्स णं सीहासणस्स दाहिणपुरथिमेणं एत्थं णं विजयस्स देवस्स अन्भिंतरियाए परिसाए अट्ठण्हं देवसाहस्सीणं अट्ठ भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तस्स णं सीहासणस्स दाहिणेणं विजयस्स देवस्स मज्झिमियाए परिसाए दसण्हं देवसाहस्सीणं दस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तस्स णं सीहासणस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स बाहिरियाए परिसाए बारसण्हं देवसाहस्सीणं बारस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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