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जीवाजीवाभिगम सूत्र •••••••••••••••••••............................................. वणस्सइकालो, एवं मणुस्सस्सवि मणुस्सीएवि, देवस्सवि देवीएवि, सिद्धस्स णं भंते! अंतरं० साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं॥
एएसि णं भंते! णेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीणं मणूसाणं मणूसीणं देवाणं देवीणं सिद्धाण य कयरे०? गोयमा! सव्वत्थोवा मणुस्सीओ मणुस्सा असंखेज्जगुणा जेरइया असंखेज्जगुणा तिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ देवा असंखेजगुणा देवीओ संखेजगुणाओ सिद्धा अणंतगुणा तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा। सेत्तं अट्ठविहा सव्वजीवा पण्णत्ता॥ २६८॥ ___ भावार्थ - अथवा सर्व जीव आठ प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, तिर्यचिनी, मनुष्य, मनुष्यनी, देव, देवी और सिद्ध।
प्रश्न - हे भगवन! नैरयिक. नैरयिक रूप में कितने काल तक रहता है?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम तक रहता है। तिर्यंचयोनिक जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनंतकाल तक रहता है। तिर्यचिनी जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रहती है। इसी तरह मनुष्य और मनुष्य स्त्री के विषय में भी समझना चाहिये। देवों का वर्णन नैरयिक के समान हैं। देवी जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम तक रहती है। सिद्ध सादि अपर्यवसित होने से सदाकाल उसी रूप में रहते हैं।
प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक का अन्तर कितना है?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है। तिर्यंच का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शत पृथक्त्व है। तिर्यचिनी का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार मनुष्य, मनुष्य स्त्री, देव और देवी का भी अन्तर समझ लेना चाहिये। सिद्ध सादि अपर्यवसित होने से अन्तर नहीं है।
प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिकों, तिर्यंचों, तिर्यंचनियों, मनुष्यों, मनुष्य स्त्रियों, देवों, देवियों और सिद्धों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? ' उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़ी मनुष्य स्त्रियां, उनसे मनुष्य असंख्यातगुणा, उनसे नैरयिक असंख्यातगुणा, उनसे तिर्यंच स्त्रियां असंख्यातगुणी, उनसे देव असंख्यातगुणा, उनसे देवियां संख्यातगुणी, उनसे सिद्ध अनंतगुणा और उनसे तिर्यंच अनंतगुणा हैं।'
विवेचन - इनका विवेचन सर्वजीव की छठी प्रतिपत्ति में किया जा चुका है। यह अष्टविध प्रतिपत्ति पूर्ण हुई।
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