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________________ २० जीवाजीवाभिगम सूत्र जम्बूद्वीप का वर्णन तत्थ णं अयं जंबूद्दीवे णामं दीवे दीवसमुद्दाणं अब्भिंतरिए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए वट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए एक्कं जोयणसयसहस्सं आयामक्खिंभेणं तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस य सहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई अद्धंगुलयं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते? ___कठिन शब्दार्थ - सव्वखुड्डाए - सर्वक्षुल्लक:-सबसे छोटा, तेलापूय संठाणसंठिए - तैलापूप संस्थान संस्थित:-तेल में तले पूए के आकार का, रहचक्कवाल संठाणसंठिए - रथचक्र वाल संस्थान संस्थित:-रथ के पहिये के आकार का, पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए - पुष्करकर्णिका संस्थान संस्थितः-कमल की कर्णिका के आकार का, पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए - परिपूर्णचन्द्रसंस्थानसंस्थितः-परिपूर्ण-पूर्णिमा के चांद के आकार का। ... भावार्थ - उन द्वीप समुद्रों में यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप सबसे आभ्यंतर है, सबसे छोटा है, गोलाकार है, तैल में तले पूए के आकार का गोल है, रथ के पहिये के समान गोल है, कमल की कर्णिका के आकार का गोल है. पनम के चांद के समान गोलाकार है। यह लाख योजन का लम्बा चौड़ा है। तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस (३,१६,२२७) योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष साढे तेरह अंगुल से कुछ अधिक परिधि वाला है। विवेचन - सभी द्वीप समुद्रों में जम्बूद्वीप सर्वप्रथम है अतः जंबूद्वीप सभी द्वीप समुद्रों में सबसे आभ्यंतर (भीतर का) है। सबसे छोटा है क्योंकि इससे आगे के द्वीप समुद्र दुगुने दुगुने विस्तार वाले हैं। यह जंबूद्वीप गोलाकार संस्थान से संस्थित है। यह तेल में तले पूए के समान, रथ के पहिये के समान, कमल की कर्णिका के समान और पूनम के चांद के समान गोल है। इस तरह जंबूद्वीप की गोलाई बताने के लिए चार उपमाएं दी है। यह जंबूद्वीप एक लाख योजन की लम्बाई चौड़ाई वाला और तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढे तेरह अंगुल से कुछ अधिक परिधि वाला है। से णं एक्काए जगईए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। सा णं जगई अट्ठ जोयणाई उड़े उच्चत्तेणं मूले बारस जोयणाई विक्खंभेणं मझे अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं उप्पिं चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पिं तणुया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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