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________________ सर्व जीवाभिगम - द्विविध वक्तव्यता ३५१ अथवा सर्वजीव दो प्रकार के कहे हैं - साकार उपयोग वाले और अनाकार उपयोग वाले। इनकी संचिट्ठणा (कायस्थिति) और अन्तर जघन्य और उत्कृष्ट से अंतर्मुहूर्त है। अल्पबहुत्व-अनाकार उपयोग वाले थोड़े हैं उनसे साकार उपयोग वाले संख्यातगुणा हैं। - विवेचन - सादि सपर्यवसित ज्ञानी का जघन्य अंतर अंतर्मुहूर्त है इतने काल तक अज्ञानी रह कर वह फिर ज्ञानी हो सकता है। उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल का (काल से अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी रूप और क्षेत्र से देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त रूप) है क्योंकि सम्यग्दृष्टि सम्यक्त्व से गिर कर इतने काल तक मिथ्यात्व में रह कर फिर अवश्य सम्यक्त्व पाता हैं। सादि अपर्यवसित ज्ञानी का अन्तर नहीं होता, क्योंकि अपर्यवसित होने से वह उस रूप का त्याग नहीं करता है। प्रारंभ के दो अज्ञानी - अनादि अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित का अन्तर नहीं है क्योंकि अनादि अपर्यवसित उस भाव का त्याग नहीं करता और अनादि सपर्यवसित अज्ञानी में भी केवलज्ञान प्राप्त होने पर वह नहीं जाता है। सादि सपर्यवसित अज्ञानी का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त (क्योंकि सम्यक्त्व का जघन्य काल इतना ही है) और उत्कृष्ट साधिक छियासठ सागरोपम का है क्योंकि सम्यक्त्व से गिरने के बाद जीव इतने काल तक अज्ञानी रह सकता है। : अल्पबहुत्व में ज्ञानी से अज्ञानी अनंतगुण हैं क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव अनंत हैं। . साकार उपयोग और अनाकार उपयोग के भेद से सर्व जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। साकार उपयोग वाले अनाकार उपयोग वाले जीवों की कायस्थिति और अंतर जघन्य और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त ही कहा गया है। टीकाकार के अनुसार यहाँ सर्वजीवों से छद्मस्थ ही लेना चाहिये, केवली नहीं क्योंकि केवलियों का साकार उपयोग और अनाकार उपयोग एक समय होता है अत: कायस्थिति और अन्तर एक समय का ही होना चाहिए जबकि यहाँ अंतर्मुहूर्त कहा है जो छद्मस्थों में होता है अत: सर्व जीव से छद्मस्थ ही समझना चाहिये। - अल्प बहुत्व से सबसे थोड़े अनाकार उपयोग वाले हैं क्योंकि अनाकार उपयोग का काल अल्प होने से वे पृच्छा के समय अल्प ही होते हैं। उनसे साकार उपयोग वाले असंख्यात गुणा हैं क्योंकि अनाकार उपयोग के काल से साकार उपयोग का काल संख्यातगुणा है। यहाँ पर साकारोपयुक्त एवं अनाकारोपयुक्त सर्व जीवों की कायस्थिति जघन्य व उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की ही बताई गई है। एक समय की नहीं बताई है। सर्व जीवों की प्रतिपत्ति में इनका वर्णन होने से केवलज्ञानी, केवलदर्शनी मनुष्यों व सिद्धों का भी इनमें समावेश होता ही है। अतः उपर्युक्त आगम पाठ से सभी केवलियों (मनुष्यों और सिद्धों) के भी साकारोपयोग (केवलज्ञान) अनाकारोपयोग (केवलदर्शन) की कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त की होना ही स्पष्ट होता है। इस आगम पाठ के साथ अन्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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