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________________ सर्व जीवाभिगम - द्विविध वक्तव्यता ३४७ प्रश्न - हे भगवन् ! सवेदक कितने काल तक सवेदक रहता है ? उत्तर - हे गौतम! सवेदक तीन प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - १. अनादि अपर्यवसित २. अनादि सपर्यवसित और ३. सादि सपर्यवसित। इनमें से जो सादि संपर्यवसित हैं वह जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनंतकाल यावत् क्षेत्र से देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त तक रहता है। प्रश्न - हे भगवन् ! अवेदक, अवेदक रूप में कितने काल तक रहता है ? उत्तर - हे गौतम! अवेदक दो प्रकार के कहे गये हैं - सादि अपर्यवसित और सादि सपर्यवसित। इनमें जो सादि सपर्यवसित है, वह जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सवेदक-अवेदक की कायस्थिति का कथन किया गया है। सवेदक तीन प्रकार के कहे गये हैं - १. अनादि अपर्यवसित २. अनादि सपर्यवसित और ३. सादि सपर्यवसित। उनमें अनादि अपर्यवसित संवेदक तो अभव्य जीव हैं। अनादि सपर्यवसित सवेदक वह भव्य जीव है जो मुक्तिगामी है यानी मुक्ति गमन की योग्यता वाला है और जिसने पहले उपशम श्रेणी प्राप्त नहीं की है। सादि सपर्यवसित सवेदक वह जीव है जो भव्य-मुक्तिगामी है और जिसने पहले उपशम श्रेणी प्राप्त की है। इनमें उपशम श्रेणी को प्राप्त कर वेदोपशम के उत्तरकाल में अवेदकत्व का अनुभव कर श्रेणी समाप्ति पर भव क्षय से अपान्तराल में मरण होने से अथवा उपशम श्रेणी से गिरने पर पुनः वेदोदय हो जाने से सवेदक हो गया ऐसा जीव सादि सपर्यवसित सवेदक है। इस सादि सपर्यवसित सवेदक की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त है क्योंकि श्रेणी की समाप्ति पर सवेदक हो जाने के अन्तर्मुहूर्त बाद पुनः श्रेणी चढ़ कर अवेदक हो सकता है। शंका - क्या एक जन्म में दो बार उपशम श्रेणी पर चढ़ा जा सकता है ? ... ' समाधान - "नैकस्मिन जन्मनि उपशम श्रेणिः क्षपक श्रेणिश्च जायते, उपशमक्षेणिद्वयं तु भवत्येव" - दो बार उपशम श्रेणी हो सकती है किन्तु एक जन्म में उपशम श्रेणी और क्षपक श्रेणी ये दो श्रेणियां नहीं हो सकती। .. सादि सपर्यवसित सवेदक की उत्कृष्ट कायस्थिति अनन्तकाल है। यह अनन्तकाल काल की अपेक्षा अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी रूप तथा क्षेत्र की अपेक्षा देशोन अर्द्धपुद्गल परावर्त है। इतने काल के पश्चात् पूर्व प्रतिपन्न उपशम श्रेणी वाला जीव आसन्नमुक्ति वाला होकर श्रेणी प्राप्त कर अवेदक हो सकता है। अनादि अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित की संचिट्ठणा (कायस्थिति) नहीं है। अवेदक दो प्रकार के कहे गये हैं - १. सादि अपर्यवसित - समयानन्तर क्षीण वेद वाले और २. सादि सपर्यवसित-उपशांत वेद वाले। जो सादि सपर्यवसित अवेदक हैं उनकी कायस्थिति जघन्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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