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________________ सप्तम प्रतिपत्ति ३३१ उत्कृष्ट वनस्पतिकाल (अनन्तकाल) है। प्रथम समय मनुष्य की संचिट्ठणा जघन्य एक समय उत्कृष्ट एक समय तथा अप्रथम समय मनुष्य की संचिट्ठणा जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहण और उत्कृष्ट एक समय कम पूर्व कोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम की है। ... विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में आठ प्रकार के संसारी जीवों की संचिट्ठणा (कायस्थिति) कही गई है। देवों और नैरयिकों की जो भवस्थिति है वही उनकी कायस्थिति है क्योंकि देव और नैरयिक मर कर पुनः देव और नैरयिक नहीं होते। प्रथम समय तिर्यंच की कायस्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट एक समय की है। अप्रथम समय तिर्यंच की कायस्थिति जघन्य एक समय कम क्षुल्लक भव की है यहाँ एक समय कम करने का कारण वह प्रथम समय में 'अप्रथम समय' विशेषण वाला नहीं रहता। उत्कृष्ट कायस्थिति वनस्पतिकाल (अनंत काल) की है। प्रथम समय मनुष्य की जघन्य कायस्थिति एक समय की और उत्कृष्ट कायस्थिति भी एक समय की है। अप्रथम समय मनुष्य की कायस्थिति जघन्य एक समय कम क्षुल्लकभव ग्रहण और उत्कृष्ट एक समय कम पूर्व कोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम की है। यह उत्कृष्ट कायस्थिति पूर्वकोटि आयुष्य वाले लगातार सात भव और आठवें भव में देवकुरु आदि में उत्पन्न होने की अपेक्षा कही गई है। - अंतरं-पढमसमयणेरइयस्स जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, अपढमसमय० जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। पढ़मसमय-तिरिक्खजोणियस्स जहण्णेणं दो खुड्डागभवग्गहणाई समऊणाइं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं। पढमसमयमणुस्सस्स जहणणेणं दो खुड्डाइं भवग्गहणाई समऊणाई उक्कोसेणं वणस्सइकालो, अपढमसमयमणुस्सस्स जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। - देवाणं जहा णेरइयाणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, अपढमसमय० जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो॥ ___भावार्थ - अंतर-प्रथम समय नैरयिक का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और .. उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। अप्रथम समय नैरयिक का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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