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________________ ३२४ जीवाजीवाभिगम सूत्र ••••••000000000000000000000000000000000000000000.......... संभव हैं। एक निगोद में सिद्धों से अनन्तगुण जीव हैं। इससे असंख्यातगुण इनके प्रदेश हैं। ७७ वें बोल से ८४ वां बोल असंख्यातगुणा हैं। ८४ वें बोल के जीव प्रदेशों से मात्र औदारिक शरीर के प्रदेश ही अनन्तगुण हीन होते हैं। आगम में अनन्तगुण अधिक बताएं हैं, इससे यही प्रतीत होता है कि - आगमकारों ने यहाँ पर तीनों शरीरों के प्रदेशों एवं उसी के अन्तर्गत योग, लेश्या आदि के पुद्गल प्रदेशों की भी शरीर प्रदेशों में सम्मिलित विवक्षा की है। इस प्रकार संभावना लगती है। तत्त्व केवली गम्य है। एएसि णं भंते! णिओयाणं सुहुमाणं बायराणं पज्जत्ताणं अपजत्ताणं णिओयजीवाणं सुहुमाणं बायराणं पजत्तगाणं अपजत्तगाणं दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो०? गोयमा! सव्वत्थोवा बायरणिओया पजत्ता दव्वट्ठयाए बायरणिओयां अपजत्ता दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा सुहुमणिओया अपजत्ता दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा सुहुमणिओया पज्जत्ता दव्वट्ठयाए संखेजगुणा सुहुमणिओएहिंतो दव्वट्ठयाए बायरणिओयजीवा पज्जत्ता दव्वट्ठयाए अणंतगुणा बायरणिओयजीवा अपज्जत्ता दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा सुहुमणिओयजीवा अपजत्ता दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा सुहमणिओयजीवा पजत्ता दव्वट्ठयाए संखेजगुणा, पएसट्टयाए सव्वत्थोवा बायरणिओयजीवा पजत्ता पएसट्टयाए बायरणिओया अपज्जत्ता पएसट्टयाए असंखेजगुणा सुहुमणिओयजीवा अपज्जत्तगा पएसट्टयाए असंखेजगुणा सुहमणिओयजीवा पज्जत्ता पएसट्टयाए संखेजगुणा सुहुमणिओयजीवेहितो पएसट्टयाए बायरणिओया पजत्ता पएसट्ठयाए अणंतगुणा बायरणिओया अपजत्तगा पएसट्ठयाए असंखेजगुणा जाव सुहमणिओया पज्जत्ता पएसट्ठयाए संखेजगुणा, दव्वट्ठपएसट्ठयाए सव्वत्थोवा बायरणिओया पजत्ता दव्वट्ठयाए बायरणिओया अपजत्ता दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा जाव सुहमणिओया पज्जत्ता दव्वट्ठयाए संखेजगुणा सुहुमणिओयाहिंतो दव्वट्ठयाए बायरणिओयजीवा पज्जत्ता दव्वट्ठयाए अणंतगुणा सेसा तहेव जाव सुहमणिओयजीवा पजत्तगा दव्वट्ठयाए संखेजगुणा सुहमणिओयजीवेहितों पज्जत्तएहितो दव्वट्ठयाए बायरणिओयजीव पजत्ता पएसट्ठयाए असंखेजगुणा सेसा तहेव जाव सुहुमणिओया पजत्ता पएसट्टयाए संखेजगुणा॥ सेत्तं छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता॥२३९॥ ॥पंचमा छव्विहा पडिवत्ती समत्ता॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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