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________________ पंचम प्रतिपत्ति - अल्पबहुत्व ३२१ सब प्रदेश की अपेक्षा अनन्त हैं। इसी प्रकार निगोद जीवों के भी प्रदेश की अपेक्षा नौ ही सूत्रों में अनंत कह देना चाहिये। विवेचन - प्रदेशों की अपेक्षा से निगोद के ९ सूत्रों एवं निगोद जीवों के ९ सूत्रों, इस तरह कुल १८ ही सूत्रों में अनन्त कह देना चाहिये। क्योंकि प्रत्येक निगोद में अनन्त प्रदेश होते हैं। - निगोद के नौ सूत्र - निगोद सामान्य, निगोद अपर्याप्तक, निगोद पर्याप्तक, सूक्ष्म निगोद सामान्य, सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तक, सूक्ष्म निगोद पर्याप्तक, बादर निगोद सामान्य, बादर निगोद अपर्याप्तक, बादर निगोद पर्याप्तक। निगोद जीव के नौ सूत्र - निगोद जीव सामान्य, निगोद जीव अपर्याप्तक, निगोद जीव पर्याप्तक, सूक्ष्म निगोदजीव सामान्य, सूक्ष्म निगोद जीव अपर्याप्तक, सूक्ष्म निगोद जीव पर्याप्तक, बादर निगोद जीव सामान्य, बादर निगोद जीव अपर्याप्तक, बादर निगोद जीव पर्याप्तक। ये अठारह ही सूत्र प्रदेश की अपेक्षा अनंत हैं। अल्पबहुत्व एएसि णं भंते! णिओयाणं सुहुमाणं बायराणं पजत्तगाणं अपजत्तगाणं दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा बायरणिओयपज्जत्तगा दव्वट्टयाए बायरणिओया अपजत्तगा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा सुहुमणिओया अपजत्तगा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा • सुहमणिओया पजत्तगा दव्वट्ठयाए संखेजगुणा, एवं पएसट्टयाए वि॥ - भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन सूक्ष्म बादर पर्याप्तक और अपर्याप्तक निगोदों में द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेश की अपेक्षा तथा द्रव्य प्रदेश की अपेक्षा से कौन किससे कम, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! द्रव्य की अपेक्षा सबसे थोड़े बादर निगोद पर्याप्तक हैं, उनसे बादर निगोद अपर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं, उनसे सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं, उनसे सूक्ष्म निगोद पर्याप्तक संख्यातगुणा हैं। इसी प्रकार प्रदेश की अपेक्षा से भी अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिये। . विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा निगोद का अल्पबहुत्व कहा गया है। जो इस प्रकार है - १. द्रव्य की अपेक्षा - सबसे थोड़े बादर निगोद (मूल कंद आदि गत) पर्याप्तक हैं क्योंकि ये प्रतिनियत क्षेत्रवर्ती है, उनसे बादर निगोद अपर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं, क्योंकि प्रत्येक बादर निगोद की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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