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________________ चतुर्थ प्रतिपत्ति - अल्पबहुत्व . २९९ . resorumoroorkerrormerorostratorriorrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr. प्रश्न - हे भगवन् ! इन बेइन्द्रिय पर्याप्तक अपर्याप्तक में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े बेइन्द्रिय पर्याप्तक, उनसे बेइन्द्रिय अपर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं। इसी प्रकार तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियों का अल्प बहुत्व समझना चाहिये। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवों का शामिल अल्प बहुत्व कहा गया है। सबसे थोड़े एकेन्द्रिय अपर्याप्तक हैं उनसे एकेन्द्रिय पर्याप्तक संख्यातगुणा हैं क्योंकि सूक्ष्म जीव सर्वलोक व्यापी हैं और सूक्ष्म जीवों में अपर्याप्तक थोड़े और पर्याप्तक संख्यातगुणा हैं। बेइन्द्रियों में पर्याप्तक थोड़े हैं और अपर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं। इसी प्रकार तेइन्द्रियों, चउरिन्द्रियों और पंचेन्द्रियों में पर्याप्तक अपर्याप्तकों का अल्प बहुत्व समझ लेना चाहिये। एएसि णं भंते! एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचेंदियाणं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाण य कयरे २....? गोयमा! सव्वत्थोवा चउरिदिया पजत्तगा पंचेंदिया पजत्तगा विसेसाहिया बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया पंचेंदिया अपजत्तगा असंखेजगुणा चउरिदिया अपजत्तगा विसेसाहिया तेइंदियअपजत्तगा विसेसाहिया बेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया एगिदियअपजत्ता अणंतगुणा सइंदिया अपजत्तगा विसेसाहिया एगिदियपजत्तगा संखेजगुणा सइंदियपजत्ता विसेसाहिया सइंदिया विसेसाहिया। सेत्तं पंचविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ॥२२५॥ ॥चउत्था पंचविहा पडिवत्ती समत्ता॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्तक और अपर्याप्तकों में कौन किससे अल्प, बहुत्व, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर- हे गौतम! सबसे थोड़े चउरिन्द्रिय पर्याप्तक, उनसे पंचेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक उनसे . बेइन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे तेइन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक असंख्यातगुणा उनसे दउरिन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे तेइन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे बेइन्द्रिय विशेषाधिक. उनसे एकेन्द्रिय अपर्याप्तक अनन्तगणा. उनसे सेन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक उनसे एकेन्द्रिय पर्याप्तक संख्यातगुणा, उनसे सेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक और उनसे सेन्द्रिय विशेषाधिक हैं। इस प्रकार पांच प्रकार के संसार समापनक जीवों का वर्णन हुआ। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में एकेन्द्रिय आदि पांचों जीवों के पर्याप्तक अपर्याप्तकों का शामिल अल्प बहुत्व कहा गया है जिसका स्पष्टीकरण प्रथम के तीन अल्पबहुत्वों के अनुसार समझ लेना चाहिये। ॥ पंचविधाख्या नामक चतुर्थ प्रतिपत्ति समाप्त। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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