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जीवाजीवाभिगम सूत्र
परिषद् की देवियों की स्थिति देशोन आधे पल्योपम की और बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति कुछ अधिक पाव पल्योपम की है। तीन प्रकार की परिषदों का अर्थ आदि कथन चमरेन्द्र की तरह समझ लेना चाहिये।
शेष वेणुदेव से लगाकर महाघोष तक का वर्णन स्थान पद के अनुसार कह देना चाहिये। विशेषता यह है कि दक्षिण दिशा के भवनपति इन्द्रों की परिषद् धरणेन्द्र की तरह और उत्तर दिशा के भवनपति इन्द्रों की परिषद् भूतानन्द की तरह कहनी चाहिये। देव देवियों की संख्या तथा स्थिति भी उसी तरह समझ लेनी चाहिये
विवेचन -- प्रस्तुत सूत्र में वर्णित असुरकुमार और नागकुमार भवनवासी देवों की तरह शेष सुपर्णकुमार आदि देवों का वर्णन भी समझ लेना चाहिये। इनके भवनों की संख्या, इन्द्रों के नाम आदि में जो भिन्नता है उसके लिए टीकाकार ने निम्न संग्रहणी गाथाएं दी है जिनका अर्थ इस प्रकार है -
१. भवनों की संख्या - दस भवनपतियों के कुल भवनों की संख्या - चउसठ्ठी असुराणं चुलसीइ चेव होइ नागाणं। बावत्तरि सुवण्णे वायुकुमाराण छन्नउह॥ १॥ दीव दिसा उदहीणं विज्जुकुमारिद थणियमग्गीण। छण्हं पि जुयलयाणं छावत्तरिओ सयसहस्सा॥ २॥
- असुरकुमार देवों के ६४ लाख भवन हैं, नागकुमारों के ८४ लाख भवन हैं, सुपर्णकुमारों के ७२ लाख, वायुकुमारों के ९६ लाख, द्वीपकुमार, दिशाकुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार देवों के प्रत्येक के ७६-७६ लाख भवन हैं।
दक्षिण दिशा एवं उत्तरदिशा के देवों की अलग अलग भवन संख्या - चोत्तीसा चोयाला अद्वतीसं च सयसहस्साई। पण्णा चत्तालीसा दाहिणओ होंति भवणाई॥३॥ तीसा चत्तालीसा चोत्तीसं चेव सयसहस्साई। छायाला छत्तीसा उत्तरओ होति भवणाई॥ ४॥
- दक्षिण दिशा के असुरकुमारों के ३४ लाख भवन, नागकुमारों के ४४ लाख, सुपर्णकुमारों के ३८ लाख, वायुकुमारों के ५० लाख शेष ६ देवों-द्वीपकुमार, दिशाकुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार-के प्रत्येक के ४०-४० लाख भवन हैं।
- उत्तर दिशा के असुरकुमारों के ३० लाख भवन, नागकुमारों के ४० लाख, सुपर्णकुमारों के
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