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________________ तृतीय प्रतिपत्ति- प्रथम वैमानिक उद्देशक 000000 २६३ सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो अब्धिंतरियाए परिसाए कई देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ? मज्झिमयाए परि० तहेव बाहिरियाए पुच्छा, गोयमा ! सक्कस्स देविंदस्स देवरणो अब्धिंतरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ मज्झिमियाए परिसाए चउद्दस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ बाहिरियाए परिसाए सोलस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तहा अब्भिंतरियाए परिसाए सत्त देवीसयाणि मज्झिमियाए० छच्च देवीसयाणि बाहिरियाए० पंच देवीसयाणि पण्णत्ताणि ॥ Jain Education International ܀܀܀܀܀ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! देवेन्द्र देवराज शक्र की कितनी परिषदाएं कही गई हैं ? उत्तर - हे गौतम! देवेन्द्र देवराज शक्र की तीन परिषदाएं कही गई हैं यथा - समिता, चण्डा और जाया । आभ्यंतर परिषदा समिता, मध्यम परिषदा चण्डा और बाह्य परिषदा जाया कहलाती है। प्रश्न - हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यंतर परिषद् में कितने हजार देव हैं, मध्यम परिषद् में कितने हजार देव हैं और बाह्य परिषद् में कितने हजार देव हैं ? उत्तर - हे गौतम! देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यंतर परिषद् में बारह हजार देव हैं, मध्यम परिषद् में चौदह हजार देव हैं और बाह्य परिषद् में सोलह हजार देव हैं। आभ्यंतर परिषद् में सात सौ देवियां, मध्यम परिषद् में छह सौ देवियां और बाह्य परिषद् में पांच सौ देवियां हैं। सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो अब्धिंतरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? एवं मज्झिमियाए बाहिरियाएवि, गोयमा ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अब्भिंतरियाए परिसाए देवाणं पंच पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाएं० चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं निण्णि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता, देवीणं ठिई-अब्धिंतरियाए परिसाए देवीणं तिण्णि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, मज्झिमियाए० दुण्णि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए० एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता, अट्ठो सो चेव जहा भवणवासीणं ॥ भावार्थ- प्रश्न हे भगवन्! देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यंतर परिषद् के देवों की, मध्यम परिषद् के देवों और बाह्य परिषद् के देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? - उत्तर - हे गौतम! देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यंतर परिषद् के देवों की स्थिति पांच पल्योपम की, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति चार पल्योपम की और बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है। आभ्यंतर परिषद् की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम की, मध्यम परिषद् For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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