________________
२५८
जीवाजीवाभिगम सूत्र ..........etterrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrroristi.sexi.ketreetirst
णो इणढे समठे। से केण?णं भंते! एवं वुच्चइ णो पभू चंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाई भुजमाणे विहरित्तए? गोयमा! चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए माणवर्गसि चेइयखंभंसि वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयाओ जिणसकहाओ सण्णिक्खित्ताओ चिटुंति, जाओ णं चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो अण्णेसिं च बहूणं जोइसियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ, तासिं पणिहाए णो पभू चंदे जोइसराया चंदवडिं० जाव चंदंसि सीहासणंसि जाव भुंजमाणे विहरित्तए, से एएणटेणं गोयमा! णो पभू चंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि तुडिएण सद्धिं दिव्वाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए।
अदुत्तर च णं गोयमा! पभू चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव सोलसहिं आयरक्खदेवाणं साहस्सीहिं अण्णेहिं बहूहिं जोइसिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे महया हयणट्टगीइवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, केवलं परियारतुडिएण सद्धिं भोगभोगाइं बुद्धिए णो चेव णं मेहुणवत्तियं॥२०३॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! क्या ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर अपने अन्तःपुर के साथ दिव्य भोग भोगने में समर्थ है ? - उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मासभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर अपने अन्तःपुर के साथ दिव्य भोग भोगने में समर्थ नहीं है ?
उत्तर - हे गौतम! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र के चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में माणवक चैत्यस्तंभ में वज्रमय गोल मंजूषाओं में बहुत सी जिनसक्थाऐं (पृथ्वीकायिक उस आकार की दाढाएं-जो वहां पर सदाकाल शाश्वत होती है।) रखी हुई हैं जो ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र और अन्य बहुत से ज्योतिष देवों और देवियों के लिये अर्चनीय यावत् पर्युपासनीय हैं। उनके कारण
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org