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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - चन्द्र सूर्य वर्णन हैं, मुखमण्डप, अवचूल, चमर-स्थासक आदि आभूषणों से उनकी कटि परिमंडित है, तपनीय स्वर्ण के उनके खुर हैं। तपनीय स्वर्ण की उनकी जिह्वा व तालु हैं । तपनीय स्वर्ण के जोतों से वे जुते हुए हैं। वे इच्छापूर्वक गमन करने वाले, प्रीतिपूर्वक गमन करने वाले, मन को लुभावने और मनोहर हैं । वे अपरिमित गति वाले, अपरिमित बलवीर्य पुरुषाकार पराक्रम वाले हैं। वे जोरदार हिनहिनाने की मधुर और मनोहर ध्वनि से आकाश को गुंजाते हुए और दिशाओं को शोभित करते हुए गति करते हैं, इस प्रकार चार हजार अश्वरूपधारी देव चन्द्र विमान को उत्तर दिशा की ओर से उठाते हैं । एवं सूरविमाणस्सवि पुच्छा, गोयमा! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति पुव्वकमेणं ॥ एवं गहविमाणस्सवि पुच्छा, गोयमा ! अट्ठ देवसाहस्सीओ परिवहंति पुव्वकमेणं, दो देवाणं साहस्सीओ पुरत्थिमिल्लं बाहं परिवहंति दो देवाणं साहस्सीओ दक्खिणिल्लं, दो देवाणं साहस्सीओ पच्चत्थिमं, दो देवसाहस्सीओ हयरूवधारीणं उत्तरिल्लं बाहं परिवर्हति ॥ एवं खत्तविमाणस्सवि पुच्छा, गोयमा! चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, तंजहा-सीहरूवधारीणं देवाणं एगा देवसाहस्सी पुरत्थिमिल्लं बाहं परिवहंति, एवं चउद्दिसिंपि, एवं तारगाणवि णवरं दो देवसाहस्सीओ परिवहंति, तंजहा -सीहरूवधारीणं · देवाणं पंचदेवसया पुरत्थिमिल्लं बाहं परिवहंति, एवं चउद्दिसिंपि ॥ १९८ ॥ भावार्थ - इसी प्रकार सूर्य विमान के विषय भी पृच्छा करनी चाहिये । हे गौतम! सोलह हजार देव चन्द्र विमान की तरह ही सूर्य विमान को वहन करते ( उठाते हैं। इसी प्रकार ग्रह विमान विषयक पृच्छा। हे गौतम! आठ हजार देव ग्रह विमान को उठाते हैं-दो हजार देव पूर्व दिशा से, दो हजार देव दक्षिण दिशा से, दो हजार देव पश्चिम दिशा से और दो हजार देव उत्तर दिशा से । नक्षत्र विमान की पृच्छा ? हे गौतम! चार हजार देव नक्षत्र विमान को वहन करते हैं। एक हजार देव सिंह का रूप धारण कर पूर्व दिशा से, एक हजार देव हाथी का रूप धारण कर दक्षिण दिशा से, एक हजार देव बैल का रूप धारण कर पश्चिम दिशा से और एक हजार देव अश्व का रूप धारण कर उत्तर दिशा. नक्षत्र विमान को उठाते हैं। इसी प्रकार तारा विमान को दो हजार देव वहन करते हैं। पांच सौ-पांच सौ देव चारों दिशाओं से तारा विमान को उठाते हैं । २५५ विवेचन - उपर्युक्त आगम पाठ के अनुसार चन्द्र आदि ज्योतिषी देवों के आभियोगिक देव ही सिंह आदि के रत्नादिमय रूप विकुर्वित करके विमान को वहन करते हैं। इस विषय में ऐसा भी सुना जाता है कि - विमानों के चारों ओर शाश्वत रूप से सिंह आदि की रत्नमयीं आकृतियें बनी हुई हैं, उनमें आभियोगिक देव विकुर्वणा करके प्रविष्ट हो जाते हैं और वे विमान को वहन करते हैं। दोनों मान्यता के अनुसार विकुर्वणा तो होती ही हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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