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________________ १० जीवाजीवाभिगम सूत्र गोयमा! धरणस्स० रण्णो अभिंतरियाए परिसाए देवाणं साइरेगं अद्धपलिओवमं ठिई पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवाणं अद्धपलिओवमं ठिई पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं देसूणं अद्धपलिओवमं ठिई पण्णत्ता, अब्भिंतरियाए परिसाए देवीणं देसूणं अद्धपलिओवमं ठिई पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं साइरेगं चउब्भागपलिओवमं ठिई पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवीणं देसूणं चउब्भागपलिओवमं ठिई पण्णत्ता, अट्ठो जहा चमरस्स। भावार्थ - हे भगवन्! धरणेन्द्र नागकुमारराज की आभ्यंतर परिषद् के देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है? मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है और बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? आभ्यंतर परिषद् की देवियों की स्थिति कितने काल की है? मध्यम परिषद् और बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? हे गौतम! धरणेन्द्र नागकुमारराज की आभ्यंतर परिषद् के देवों की स्थिति कुछ अधिक आधे पल्योपम की, मध्यम परिषद् के देवों की आधे पल्योपम की और बाह्य परिषद् के देवों की कुछ कम आधे पल्योपम की स्थिति कही गई है। आभ्यंतर परिषद् की देवियों की स्थिति कुछ कम आंधे पल्योपम की, मध्यम परिषद् की देवियों की कुछ अधिक पाव पल्योपम की और बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति पाव पल्योपम की है। तीन परिषदाओं का अर्थ आदि कथन चमरेन्द्र की तरह समझना चाहिये। कहि णं भंते! उत्तरिल्लाणं णागकुमाराणं जहा ठाणपए जाव विहरइ॥भूयाणंदस्स णं भंते! णागकुमारिदस्स णागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए कइ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? मज्झिमियाए परिसाए कई देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? बाहिरियाए परिसाए कइ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? अब्भिंतरियाए परिसाए कइ देविसया पण्णत्ता? मन्झिमियाए परिसाए कइ देविसया पण्णत्ता? बाहिरियाए परिसाए कई देविसया पण्णत्ता? गोयमा! भूयाणंदस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररण्णो अन्भिंतरियाए परिसाए पण्णासं देवसहस्सा पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए सटुिं देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, बाहिरियाए परिसाए सत्तरि देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, अभिंतरियाए परिसाए दो पणवीसं देविसयाणं पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए दो देविसया पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए पण्णत्तरं देविसयं पण्णत्तं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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