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जीवाजीवाभिगम सूत्र
युक्तप्रमाण प्रधान लक्षण प्रशस्त रमणीय गग्गरगल शोभितानां-युक्तप्रमाण प्रधान लक्षण युक्त प्रशस्त रमणीय गर्गर नामक आभूषणों से सुशोभित, लंघणवग्गणधावण धारणतिवइजइण सिक्खियगईणं - लंघन वल्गन धावन धारण त्रिपदीजयि शिक्षितगतिनां-लांघना, उछलना, दौडना, स्वामी को धारण किये रखना त्रिपदी (लगाम) के चलाने के अनुसार चलना इन सब बातों की शिक्षा के अनुसार गति करने वाले, ललियलासगगइ (ललंतथासगल) लाडवर भूसणाणं - सुंदर और विलास पूर्ण गति से हिलते हुए दर्पणाकार स्थासक-आभूषणों से भूषित ललाट वाले, मुहमंडगोचूलचमरथासगपरिमंडियकडीणंउनकी कटि मुखमंडप, अवचूल, चमर स्थासक आदि आभूषणों से परिमंडित हैं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! चन्द्र विमान को कितने हजार देव वहन करते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! चन्द्र विमान को सोलह हजार देव वहन करते हैं। उनमें से चार हजार देव सिंह का रूप धारण कर पूर्व दिशा से उठाते हैं। उन सिंहों का वर्णन इस प्रकार है - वे श्वेत हैं, सुंदर हैं, श्रेष्ठ कांति वाले हैं, शंख तल के समान विमल और निर्मल तथा जमे हुए दही, गाय का दूध, फेन, चांदी के समूह के समान श्वेत प्रभा वाले हैं, उनकी आंखे शहद की गोली के समान पीली हैं, उनके मुख में स्थित दाढाएं सुंदर प्रकोष्ठों से युक्त, गोल, मोटी, परस्पर जुड़ी हुई विशिष्ट और तीखी हैं, उनके तालु और जीभ लाल कमल के पत्ते के समान मृदु एवं सुकोमल हैं, उनके नख प्रशस्त और शुभ वैडूर्य मणि की तरह चमकते हुए और कर्कश हैं, उनके उरु विशाल और मोटे हैं, उनके कंधे पूर्ण और विपुल हैं, उनके गले की केसर सटा मृदु, स्वच्छ (विशद) प्रशस्त सूक्ष्म लक्षण युक्त और विस्तीर्ण है उनकी गति चंकमणों-लीलाओं और उछलने कूदने से गर्वभरी (मस्तानी) और साफ सुथरी होती है, उनकी पूंछे ऊंची उठी हुईं, सुनिर्मित सुजात और फटकार युक्त होती है। उनके नख वज्र के समान कठोर हैं, उनके दांत वज्र के समान मजबूत हैं, उनकी दाढाएं वज्र के समान सुदृढ़ हैं, उनकी जीभ तपे हुए सोने के समान है, तपे हुए सोने की तरह उनके तालु हैं, सोने के जोतों से वे जोते हुए हैं, ये इच्छानुसारगति करने वाले हैं, इनकी गति प्रीतिपूर्वक होती है, ये मन को रुचिकर लगने वाले हैं, मनोरम है, मनोहर हैं इनकी गति अमित-अवर्णनीय है इनका बल, वीर्य, पुरुषकार पराक्रम अपरिमित है। ये जोर जोर से सिंहनाद करते हुए और उस सिंहनाद से आकाश तथा चारों दिशाओं को गुंजाते हुए
और सुशोभित करते हुए चलते रहते हैं। इस प्रकार चार हजार देव सिंह का रूप धारण कर चन्द्र विमान को पूर्व दिशा की ओर से वहन करते चलते हैं।
चन्द्र विमान को दक्षिण तरफ से चार हजार देव हाथी का रूप धारण करके उठाते हैं। हाथियों का वर्णन इस प्रकार हैं - वे हथी श्वेत हैं, सुंदर हैं, सुप्रभा वाले हैं। शंख तल के समान विमल, निर्मल, जमे हुए दही, गाय के दूध, फेन और चांदी के समूह के समान वे श्वेत कांति वाले हैं। उनके वज्रमय कुम्भ युगल के नीचे रही हुई सुंदर मोटी सूण्ड में जिन्होंने क्रीडार्थ रक्तपद्मों के प्रकाश को ग्रहण किया
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