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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - देव शक्ति विषयक वर्णन २४१ •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव पहले किसी वस्तु को फेंके और फिर वह गति करता हुआ उस वस्तु को बीच में ही पकड़ना चाहे तो क्या वह ऐसा करने में समर्थ है ? उत्तर- हाँ गौतम! वह ऐसा करने में समर्थ है। प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि वह ऐसा करने में समर्थ है? उत्तर - हे गौतम! फैंकी हुई वस्तु पहले शीघ्र गति वाली होती है और बाद में उसकी गति मंद हो जाती है जबकि उस महर्द्धिक और महाप्रभावशाली देव की गति पहले भी शीघ्र होती है और बाद में भी शीघ्र होती है इसलिये ऐसा कहा जाता है कि वह देव उस वस्तु को पकड़ने में समर्थ है। देवे णं भंते! महिड्डिए० बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पुव्वामेव बालं अच्छित्ता अभेत्ता पभू गंठित्तए? णो इणढे समटे१, देवे णं भंते! महिड्डिए० बाहिरए पुग्गले अपरियाइत्ता पुव्वामेव बालं छित्ता भित्ता पभू गंठित्तए? णो इणढे समढे २, देवे णं भंते! महिड्डिए० बाहिरए पुग्गले परियाइत्ता पुव्वामेव बालं अच्छित्ता अभित्ता पभू गंठित्तए? णो इणढे समढे ३, देवे णं भंते! महिड्डिए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पुव्वामेव बालं छेत्ता भेत्ता पभू गंठित्तए? हंता पभू ४, तं चेव णं गठिं छउमत्थे ण जाणइ ण पासइ एवं सुहुमं च णं गंठिया ३, देवे णं भंते! महिड्डिए. पुव्वामेव बालं अच्छेत्ता अभेत्ता पभू दीहीकरित्तए वा हस्सीकरित्तए वा? णो इण? समटे ४, एवं चत्तारिवि गमा, पढमबिइयभंगेसु अपरियाइत्ता एगंतरियगा अच्छित्ता अभित्ता, सेसं तहेव, तं चेव सिद्धिं छउमत्थे, ण जाणइ ण पासइ एसुहुमं च णं दीहीकरेज वा हस्सीकरेज वा॥१९२॥ कठिन शब्दार्थ - अपरियाइत्ता - ग्रहण किये बिना, अच्छित्ता - छेदे बिना, अभित्ता - भेदे बिना, गंठित्तए - सांधने में, दीहीकरित्तए - दीर्घ (बड़ा) करने में, हस्सीकरित्तए - ह्रस्व (छोटा) करने में। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये बिना और किसी बाल (केश) को पहले छेदे भेदे बिना क्या उसके बाल को सांधने में समर्थ है ? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं अर्थात् ऐसा नहीं हो सकता। . प्रश्न - हे भगवन्! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके और बाल को पहले छेदे भेदे बिना क्या उसे सांधने में समर्थ है ? उत्तर - हे गौतम! वह समर्थ नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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