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तृतीय प्रतिपत्ति - समुद्रों के पानी का स्वाद
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उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार पत्रासव, त्वचासव, खजूर का सार, भलीभांति पकाया हुआ इक्षुरस, मेरक, कापिशायन, चन्द्रप्रभा, मनःशिला, वरसीधु, वरवारुणी तथा आठ बार पीसने से तैयार की गई जंबूफल मिश्रित वरप्रसन्ना जाति की मदिराएं उत्कृष्ट नशा देने वाली होती है, ओठों पर लगते ही आनंद देने वाली, कुछ कुछ आंखें लाल कर देने वाली, शीघ्र नशा देने वाली होती है तथा जो आस्वाद्य, पुष्टिकारक, मनोज्ञ और शुभ वर्णादि से युक्त है, क्या वरुणोद समुद्र का जल ऐसा ही है ? ।
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वरुणोद समुद्र के पानी का स्वाद इससे भी इष्टतर यावत् स्वादयुक्त होता है।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्षीरोद समुद्र के जल का स्वाद कैसा कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! जैसे चातुरन्त चक्रवर्ती के लिए चतुःस्थान परिणत गाय का दूध (खीर) जो मंद मंद अग्नि पर पकाया गया हो आदि और अंत में मिश्री मिला हुआ हो जो वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से श्रेष्ठ हो, क्या ऐसे दूध के समान क्षीरोद समुद्र का जल है ?
हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्षीरोद समुद्र का जल इससे भी इष्टतर है। प्रश्न- हे भगवन्! घृतोद समुद्र का जल का आस्वाद कैसा है?
उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार शरद ऋतु के गाय के घी के मंड (थर), सल्लकी और कनेर के फूल जैसा वर्णवाला, भलीभांति गर्म किया हुआ, तत्काल नितारा (छाना) हुआ तथा श्रेष्ठ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाला होता है, क्या घृतोद समुद्र का जल ऐसा ही है ?
हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है, इससे भी अधिक इष्टतर घृतोद समुद्र का जल का आस्वाद है। प्रश्न - हे भगवन् ! क्षोदोद समुद्र के पानी का स्वाद कैसा है ?
उत्तर - हे. गौतम! जैसे भेरुण्ड देश में उत्पन्न जातिवंत उन्नत पौंड्रक जाति का ईख होता है जो पकने परं हरिताल के.समान पीला हो जाता है, जिसके पर्व काले हैं, ऊपर और नीचे के भाग को छोड़ कर केवल बिचले त्रिभाग को ही बलिष्ठ बैलों द्वारा चलाये गये यंत्र से रस निकाला गया हो जो वस्त्र से छाना हुआ हो, जिसमें चार प्रकार की वस्तुएं (दालचीनी, इलाइची, केसर और कालीमिर्च) मिलाये जाने पर सुगंधित हो, जो बहुत पथ्य, पाचक, शुभवर्णादि से युक्त हो क्या ऐसे इक्षुरस जैसा क्षोदोद समुद्र के पानी का स्वाद है?
हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्षोदोद समुद्र का पानी इससे भी इष्टतर है।
इसी प्रकार स्वयंभूरमण समुद्र के पूर्व तक के शेष समुद्रों का पानी का स्वाद भी समझ लेना चाहिये। विशेषता यह है स्वयंभूरमण समुद्र का जल वैसा ही स्वच्छ, जातिवंत और पथ्य रूप है जैसा । कि पुष्करोद समुद्र का जल कहा गया है।
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