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________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र भावार्थ - उनमें जो पश्चिम दिशा का अंजन पर्वत है उसकी चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियां हैं। उनके नाम - नंदिसेना, अमोघा, गोस्तूफा और सुदर्शना ( अथवा भद्रा, विशाला, कुमुदा और पुंडरिकिणी) सिद्धायतन तक सारा वर्णन कह देना चाहिये। तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले अंजणगपव्वए तस्स णं चउद्दिसिं चत्तारि णंदापुक्खरिणीओ तंजा - विजया वेजयंती जयंती अपराजिया सेसं तहेव जाव सिद्धाययणा सव्वा ते चिय वण्णणा णायव्वा, तत्थणं बहवे भवणवइ-वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया देवा, चाउमासियापडिवएसु संवच्छरिएसु, वा अण्णेसु बहुसु जिणजम्मणणिक्खमणणाणुप्पत्तिपरिणिव्वाणमाइएसु य, देवकज्जेसु य, देवसमुदएसु य, देवसमिइसु य, देवसमवाएसु य देवपओयणेसु य एगंतओ, सहिया समुवागया समाणा, पमुइयपक्कीलिया, अट्ठाहियारूवाओ महामहिमाओ करेमाणा, पालेमाणा सुहंसुहेणं विहरंति * । कइलासहरिवाहणा य तत्थ दुवे देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्ठिया परिवसंति, से एएणद्वेणं गोयमा ! जाव णिच्चा जोइसं संखेज्जं ॥ १८३ ॥ भावार्थ - उनमें जो उत्तरदिशा का अंजन पर्वत है उसकी चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियां हैं । यथा - विजया, वैजयंती, जयंती और अपराजिता । शेष सारा वर्णन सिद्धायतन तक कह देना चाहिये ।. २२६ * पाठान्तर ( तहेव दहिमुहगपव्वया तहेव जाव वणखंडा बहु० जाव विहरंति । अदुत्तरं च णं गोयमा ! णंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवालविक्खंभस्स बहुमज्झदेसभाए' चउसु विदिसासु चत्तारि रइकरगपव्वया प० तं० उत्तरपुरच्छिमिल्ले रइकरगपव्वए दाहिणपुरत्थिमिल्ले रइकरगपव्वए दाहिणपच्चत्थिमिल्ले रइकरगपव्वए उत्तरपच्चत्थिमिल्ले रइकरगपव्वए, ते णं रइकरगपव्वया दसजोयणसयाई उड्डुं उच्चत्तेणं, दसगाउयसयाइं उव्वेहेणं, सव्वत्थसमा झल्लरिसंठाणसंठिया, दसजोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साइं छच्चतेवीसे जोयणसए परिक्खेवेणं, सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा । तत्थ णं जे से उत्तरपुरच्छिमिल्ले रइकरगपव्वए तस्स णं चउद्दिसिमीसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवप्प-माणमेत्ताओ चत्तारि रायहाणीओ प० तं० णंदोत्तरा णंदा उत्तरकुरा देवकुरा, कण्हाए कण्हराईए कामाए कामरक्खियाए । तत्थ णं जे से दाहिणपुरच्छिमिल्ले रइकरगपव्वए तस्स णं चउद्दिसिं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ प० तं ० - सुमणा सोमणसा अच्चिमाली मणोरमा, पउमाए सिवाए सईए अंजूए । तत्थ णं जे से दाहिणपच्चत्थिमिल्ले रइकरगपव्वए तस्स णं चउद्दिसिं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणमेत्ताओ चत्तारि रायहाणीओ प० तं०-भूया भूयवडिंया गोथूभा सुदंसणा, अमलाए अच्छराए raमियाए रोहिणीए । तत्थ णं जे से उत्तरपच्चत्थिमिल्ले रइकरगपव्वए तस्स णं चउद्दिसिमीसाणस्स देविंदस्सदेवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणमेत्ताओ चत्तारि रायहाणीओ प० तं० - रयणा रयणोच्चया सव्वरयणा रयणसंचया, वसूए वसुगुत्ताए वसुमित्ताए वसुंधराए । ) Jain Education International - - For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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