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तृतीय प्रतिपत्ति - वरुणवर द्वीप वर्णन
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य सयलंमिवि सुभासवुप्पालिया समरभग्गवणोसहयार-सुरभिरसदीविया सुगंधा आसायणिज्जा विस्सायणिज्जा पीणणिज्जा दप्पणिज्जा मयणिज्जा सव्विंदियगायपल्हायणिज्जा) आसवा मासला पेसला (ईसी ओढावलंबिणी ईसी तंबच्छिकरणी ईसी वोच्छेया कडुआ) वण्णेणं उववेया गंधेणं उववेया रसेणं उववेया फासेणं उववेया, भवे एयारूवे सिया? गोयमा! णो इणढे समढे, वारुणस्स णं समुदस्स उदए एत्तो इट्ठतरे जाव आसाएणं पण्णत्ते, तत्थ णं वारुणिवारुणकंता दो देवा महिड्डिया जाव परिवसंति, से एएणद्वेणं जाव णिच्चे, वारुणिवरेणं दीवे कइचंदा पभासिंस वा ३? सव्वं जोइसं संखिज्जगेण णायव्वं ॥१८०॥
कठिन शब्दार्थ - चंदप्पभाइ - चन्द्रप्रभा नामक सुरा, मणिसिलागाइ - मणिशलाका सुरा, वरवारुणीइ - श्रेष्ठ वारुणी सुरा, खज्जुरसारेइ - खजूर का सार, मुद्दियासारेइ - मृद्धिका (द्राक्षा) का सार, पोसमाससयभिसयजोगवत्तिया - पौष मास में सैकडों वैद्यों द्वारा तैयार की गई, णिरुवहयविसिट्ठदिण्णकालोवयारा - निरुपहत और विशिष्ट कालोपचार से निर्मित, उक्कोसगमयपत्ताउत्कृष्ट मादक शक्ति से युक्त, अट्ठपिट्ठणिट्ठिया - आठ बार पिष्ट (आटा) प्रदान से निष्पन्न, आसला - आस्वाद वाली, मासला - प्रकृष्ट रसास्वाद वाली, पेसला - पेशल (मनोज्ञ)।
भावार्थ - वरुणवरद्वीप को गोल और वलयाकार रूप से संस्थित वरुणोद नामक समुद्र चारों ओर से घेर कर स्थित है। वह वरुणोद समुद्र चक्रवाल संस्थान से संस्थित है, विषम चक्रवाल संस्थान से संस्थित नहीं है इत्यादि सारा वर्णन पूर्ववत् कह देना चाहिये। विष्कम्भ और परिधि संख्यात लाख योजन की है। पद्मवरवेदिका, वनखण्ड, द्वार, दारों का अंतर, प्रदेश स्पर्श, जीवोत्पत्ति आदि और अर्थ संबंधी प्रश्नोत्तर पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये।
हे गौतम! वरुणोद. समुद्र का पानी लोकप्रसिद्ध चन्द्रप्रभा नामक सुरा, मणिशलाकः स श्रेपर सिधुसुरा, श्रेष्ठ वारुणी सुरा, पत्रासव, पुष्पासव, चोयासव, फलासव, मधु, मेरक, जम्बूफल प्रसन्न नामक सुरा, जातिपुष्प से वासित सुरा, खजूर का सार, द्राक्षासार, कापिशायन सुरा, भलीभांति पकाया हुआ इक्षु रस, बहुत सी सामग्रियों से युक्त पौष मास में सैकड़ों वैद्यों द्वारा तैयार की गई निरुपहत और विशिष्ट कालोपचार से निर्मित पन: पनः धोकर उत्कृष्ट मादक शक्ति से युक्त आठ बार पिष्ट प्रदान से निष्पन्न, आस्वाद वाली गाढ पेशल अति प्रकृष्ट रसास्वाद वाली होने से शीघ्र ही ओठ को छू कर आगे बढ़ जाने वाली, नेत्रों को कुछ कुछ लाल करने वाली, इलाइची आदि से मिश्रित होने के कारण पीने के बाद तीखी (थोड़ी कटुक) लगने वाली वर्ण युक्त, सुगंध युक्त सुस्वाद युक्त सुस्पर्श युक्त सुरा आदि के समान क्या वरुणोद समुद्र का पानी है ?
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