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जीवाजीवाभिगम सूत्र
वारुणिवरोदगपडिहत्थाओ पासाइयाओ ४, तासु णं खुड्डाखुड्डियासु जाव बिलपंतिया बहवे उप्पायपव्वया जाव खडहडगा सव्वफलिहामया अच्छा तहेव वरुणवरुणप्पभा य एत्थ दो देवा महिड्डिया० परिवसंति, से तेणट्टेणं जाव णिच्चे । जोइसं सव्वं संखेज्जएणं जाव तारागणकोडिकोडीओ ।
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भावार्थ:
- प्रश्न हे भगवन्! वरुणवरद्वीप, वरुणवरद्वीप क्यों कहलाता हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वरुणवरद्वीप में स्थान-स्थान पर यहां, वहां बहुत सी छोटी-छोटी बावड़ियां यावत् बिल पंक्तियां हैं जो स्वच्छ हैं, प्रत्येक पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से चारों ओर से घिरी हुई हैं। श्रेष्ठ वारुणी के समान जल से परिपूर्ण हैं यावत् प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है। उन छोटी छोटी बावड़ियों में यावत् बिल पंक्तियों में बहुत से उत्पात पर्वत यावत् खडहडग हैं जो सर्व स्फटिक मय स्वच्छ हैं आदि सारा वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिये। वहां वरुण और वरुणप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं इसलिये वरुणवरद्वीप कहलाता है यावत् वह नित्य शाश्वत है। वहां चन्द्र सूर्य आदि ज्योतिषी देव संख्यात - संख्यात कहने चाहिये यावत् वहां संख्यात तारागण शोभित होते थे, होते हैं और होंगे।
वरुणवरण्णं दीवं वारुणोदे णामं समुद्दे वट्टे वलया० जाव चिट्ठइ, समचक्क० विसमचक्कवालवि० तहेव सव्वं भाणियव्वं, विक्खंभपरिक्खेवो संखिज्जाई जोयणसहस्साइं दारंतरं च पउमवर० वणसंडे पएसा जीवा अट्ठो
गोयमा ! वारुणोदस्स णं समुद्दस्स उदए से जहा णामए चंदप्पभाइ वा मणिसिलागाइ वा वरसीहू वरवारुणीइ वा पत्तासवेइ वा पुप्फासवेइ वा चोयासवे वा फलासवेइ वा महुमेरएइ वा जंबूफलपुटुवण्णाइ वा जाइप्पसण्णाई वा खज्जूरसारेइ वा मुद्दियासारेइ वा कापिसायणाइ वा सुपक्कखोयरसेइ वा पभूयसंभारसंचिया पोसमाससयभिसयजोगवत्तिया णिरुवहयविसिट्ठ दिण्णकालोवयारा सुधोया उक्कोसमयपत्ता अट्ठपिट्ठणिट्ठिया ( मुरवइंतवरकिमदिण्णकद्दमा कोपसण्णा अच्छा वरवारुणी अतिरसा जंबूफलपुट्ठवण्णा सुजाया ईसिउट्ठावलंबिणी अहियमधुरपेज्जा ईसीसिरत्तणेत्ता कोमलकवोलकरणी जाव आसाइया विसाइया अणिहुयसंलावकरणहरिसपीइजणणी संतोसततबिबोक्क हाव-विब्भमविलासवेल्लहलगमणकरणी विरणमधियसत्तजलणणी य होई संगांमदेस - कालेकयरणसमरपसरकरणी कढियाणविज्जुपयतिहिययाण मउयकरणी य होति उववेसिया समाणा गई खलावेइ
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