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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - लवण समुद्र, जंबूद्वीप को जलमग्नक्यों नहीं करता? १८३ +++++...........................•••••••••••••••••••••••••••••••• मार्दव संपन्न, आलीन, भद्र और विनीत हैं उनके प्रभाव से लवण समुद्र जंबूद्वीप को जल से आप्लावित नहीं करता, उत्पीड़ित नहीं करता और जल मग्न नहीं करता है। गंगा, सिंधु, रक्ता और रक्तवती नदियों में महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थिति वाली देवियां रहती हैं। उनके प्रभाव से लवण समुद्र जंबूद्वीप को जलमग्न नहीं करता है। ___ चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत और शिखरी पर्वत में महर्द्धिक देव रहते हैं उनके प्रभाव से, हेमवत हेरण्यवत क्षेत्रों में मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं उनके प्रभाव से, रोहितांश, सुवर्णकूला और रूप्यकूला नदियों में जो महर्द्धिक देवियां हैं उनके प्रभाव से शब्दापाति विकटापाति वृत वैताढ्य पर्वतों में महर्द्धिक पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैं उनके प्रभाव से, महाहिमवंत और रुक्मि वर्षधर पर्वतों में महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैं उनके प्रभाव से, हरिवर्ष और रम्यक वर्ष क्षेत्रों में मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, गंधापति और मालवंत वृत वैताढ्य पर्वतों में महर्द्धिक देव हैं, निषध और नीलवंत वर्षधर पर्वतों में महर्द्धिक देव हैं इसी तरह सब द्रहों की देवियों का कथन करना चाहिये। पद्मद्रह, तिगिंछद्रह, केसरिद्रह आदि द्रहों में महर्द्धिक देव रहते हैं उनके प्रभाव से, पूर्वविदेहों और पश्चिम विदेहों में अर्हन्त (तीर्थंकर) चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंघाचारण विद्याधर मुनि, श्रमण श्रमणियां, श्रावक श्राविकाएं एवं मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं उनके प्रभाव से, मेरु पर्वत के महर्द्धिक देवों के प्रभाव से, उत्तरकुरु में जंबू सुदर्शना में अनादृत नामक जंबूद्वीप का अधिपति महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थिति वाला देव रहता है, उसके प्रभाव से लवण समुद्र जंबूद्वीप को जल से आप्लावित, उत्पीडित और जलमग्न नहीं करता है। . इसके अलावा हे गौतम! दूसरी बात यह है कि लोकस्थिति और लोकस्वभाव ही ऐसा है कि लवण समुद्र जंबूद्वीप को जल से आप्लावित, उत्पीड़ित और जलमग्न नहीं करता है। ॥मंदरोद्देशक समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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