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________________ १६२ जीवाजीवाभिगम सूत्र विवेचन - गौतमद्वीप का सर्वाग्र ५३७ ६३ योजन से कुछ कम गणित से निकलता है। जिसमें से समुद्र की तरफ आधा योजन जल से बाहर है और जल की ऊंचाई के कारण १७६ ८९योजन जल में डुबा हुआ है। समुद्री गहराई के कारण २५२ ६० योजन का भाग भी जल में आया हुआ है। इस प्रकार ४२९ ४५ योजन जितना समुद्र की तरफ पानी से ढका हुआ है। जमीन के उपरीय भाग का एक चतुर्थांश जमीन में होने से लगभग १०७ १६ योजन जमीन में गया हुआ है। इस प्रकार सर्वाग्र (१८+१७६ २२+२५२ ६६+१०७ २६-५३७ ३२) योजन के लगभग होता है। जम्बूद्वीप की तरह गौतमद्वीप का भाग ८८४० और आधा योजन अर्थात् ४८ योजन के लगभग जल से बाहर है। ८८.४० जल में डुबा हुआ, १२६ ३६ योजन समुद्र की गहराई के कारण पानी में आया हुआ एवं २३३ ९६ योजन जमीन में आया हुआ। इस प्रकार कुल मिलाकर ५३७ ६३ योजन (८८१६ १८८८ १८+१२६ ३६ २३३ ९८ -५३७ २३ योजन) सर्वाग्र होता है। मानचित्र अगले पृष्ठ क्रमांक १६३ पर देखें। जबूद्वीप के चन्द्रद्वीपों का वर्णन कहि णं भंते! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिमेणं लवणसमुहं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं जंबूदीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता, जंबुद्दीवंतेणं अद्धेगूणणउइजोयणाइं चत्तालीसं पंचाणउई भागे जोयणस्स ऊसिया जलंताओ लवणसमुदंतेणं दो कोसे ऊसिया जलंताओ बारस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सेसं तं चेव जहा गोयमदीवस्स परिक्खेवो पउमवरवेइया पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता दोण्हवि वण्णओ बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा जाव जोइसिया देवा आसयंति। भावार्थ - हे भगवन् ! जंबूद्वीप के दो चन्द्रमाओं के दो चन्द्रद्वीप कहां हैं ? हे गौतम! जंबूद्वीप के मेरु पर्वत के पूर्व में लवण समुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर वहां जम्बूद्वीप के दो चन्द्रमाओं के दो चन्द्रद्वीप हैं। ये द्वीप जंबूद्वीप की दिशा में साढे अठासी (८८१) योजन और ४० योजन पानी से ऊपर उठे हुए हैं और लवण समुद्र की दिशा में दो कोस पानी से ऊपर उठे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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