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________________ १३२ जीवाजीवाभिगम सूत्र से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते वण्णओ दोण्हवि। ____ तस्स णं जंबुपेढस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता तं चेव जाव तोरणा जाव छत्ता॥ भावार्थ - हे भगवन् ! उत्तरकुरु क्षेत्र में जंबू-सुदर्शना का जंबूपीठ नाम का पीठ कहां कहा गया है? ' हे गौतम! जंबूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत के उत्तर दिशा में नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में मालवंत वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, गंधमादन वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के पूर्व किनारे पर उत्तरकुरु क्षेत्र का जंबूपीठ नामक पीठ है जो पांच सौ योजन का लंबा चौड़ा है पन्द्रह सौ इक्यासी योजन से कुछ अधिक उसकी परिधि है। वह मध्यभाग में बारह योज़न की मोटाई वाला है उसके बाद क्रमशः प्रदेश हानि होने से थोड़ा कम होता होता सब चरमांतों में दो कोस का मोटा रह जाता है। वह सर्व जंबूनद स्वर्णमय है स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है। वह जंबूपीठ एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है। दोनों का वर्णन कह देना चाहिये। उस जंबूपीठ की चारों दिशाओं में चार त्रिसोपानप्रतिरूपक कहे गये हैं आदि सारा वर्णन पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये। तोरणों का यावत् छत्रातिछत्र तक कथन कर देना चाहिये। तस्स णं जंबूपेढस्स उप्पिं बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव मणि०॥ तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता अट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा॥ तीसे णं मणिपेढियाए उवरि एत्थ णं महं जंबूसुदंसणा पण्णत्ता अट्ठजोयणाई उठे उच्चत्तेणं अद्धजोयणं उव्वेहेणं दो जोयणाइं खंधे अद्ध जोयणाइं विक्खंभेणं छ जोयणाई विडिमा बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं साइरेगाइं अट्ठ जोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता, वइरामयमूला रययसुपइट्ठियविडिमा एवं चेइयरुक्खवण्णओ जाव सव्वो रिट्ठामयविउलकंदा वेरुलियरुइरक्खंधा सुजायवरजायरूवपढमगविसालसाला णाणामणिरयणविविहसाहप्पसाहवेरुलियपत्ततवणिजपत्तविंटा जंबूणयरत्तमउयसुकुमालपवालपल्लवंकुरधरा विचित्तमणिरयणसुरहिकुसुमा फलभारणमियसाला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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