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________________ १०० जीवाजीवाभिगम सूत्र +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ सुनाने लगते हैं, कोई.देव उक्त सभी क्रियाएं करते हैं। कोई देव ऊपर उछलते हैं, कोई देव नीचे गिरते हैं, कोई देव तिरछे गिरते हैं, कोई देव उक्त तीनों क्रियाएं करते हैं। ____ कोई देव जलने लगते हैं, कोई ताप से तप्त होने लगते हैं, कोई खूब तपने लगते हैं कोई देव उक्त तीनों क्रियाएं करते हैं, कोई देव गर्जना करते हैं, कोई देव बिजलियाँ चमकाते हैं, कोई देव वर्षा करने लगते हैं कोई देव उक्त तीनों क्रियाएं करते हैं, कोई देव देवों का सम्मेलन करते हैं, कोई देव देवों को हवा में नचाते हैं, कोई देव देवों में कहकहा मचाते हैं, कोई देव हु हु हु करते हुए हर्षोल्लास प्रकट करते हैं, कोई देव उक्त सभी क्रियाएं करते हैं, कोई देव देवोद्योत करते हैं, कोई देव विद्युत् का चमत्कार करते हैं, कोई देव चेलोत्क्षेप करते हैं। कोई देव उक्त सभी क्रियाएं करते हैं। किन्हीं देवों के हाथों में उत्पल कमल हैं यावत् किन्हीं देवों के हाथों में सहस्रपत्र कमल हैं, किन्हीं के हाथों में घंटाएं हैं, किन्हीं के हाथों में कलश हैं, किन्हीं के हाथों में धूप कडुच्छुक हैं। इस प्रकार वे देव हृष्ट तुष्ट हैं यावत् हर्ष के कारण उनके हृदय विकसित हो रहे हैं। वे उस विजया राजधानी में चारों ओर इधर उधर दौड़ रहे हैं- भाग रहे हैं। तए णं तं विजयं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ चत्तारि अग्गमहिसीओ सपरिवाराओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे विजयरायहाणीवत्थव्वा वाणमंतरा देवा य देवीओ य तेहिं वरकमलपइट्ठाणेहिं जाव अट्ठसएणं सोवणियाणं कलसाणं तं चेव जाव अट्ठसएणं भोमेजाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं सव्वतुवरेहिं सव्वपुप्फेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं सव्विड्डीए जाव णिग्घोसणाइयरवेणं महया महया इंदाभिसेएणं अभिसिंचंति २ त्ता पत्तेयं २ सिरसावत्तं अंजलिं कट्ट एवं वयासी-जय जय णंदा! जय जय भद्दा! जय जय णंद भदं ते अजियं जिणेहि जियं पालयाहि अजियं जिणेहि सत्तुपक्खं जियं पालेहि मित्तपक्खं जियमझे वसाहि तं देव! णिरुवसग्गं इंदो इव देवाणं चंदो इव ताराणं चमरो इव असुराणं धरणो इव णागाणं भरहो इव मणुयाणं बहूणि पलिओवमाइं बहूणि सागरोवमाणि बहूणि पलिओवमसागरोवमाणि चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं विजयस्स देवस्स विजयाए रायहाणीए अण्णेसिं च बहूणं विजयरायहाणिवत्थव्वाणं वाणमंतराणं देवाण देवीणं य आहेवच्चं जाव आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहराहित्तिकट्ट महया २ सद्देणं जयजयसदं पउंजंति॥१४१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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