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प्रस्तुत सूत्र पर विवेचन एवं व्याख्या बहुत विस्तृत होने से इस सूत्रराज का कलेवर काफी बढ़ गया। इसकी सामग्री लगभग आठ सौ पेज हो गई। पाठक बंधु इसका सुगमता से अध्ययन, अनुशीलन कर सके, इसके लिए इसका प्रकाशन दो भागों में किया जा रहा है। पहले भाग में प्रथम तीसरी प्रतिपत्ति का तक का विवेचन लिया गया है। शेष तीसरी एवं छह प्रतिपत्तियों का . विवेचन दूसरे भाग में लिया गया है।
संघ का आगम प्रकाशन का काम प्रगति पर है। इस आगम प्रकाशन के कार्य में धर्म प्राण समाज रत्न तत्त्वज्ञ सुश्रावक श्री जशवंतलाल भाई शाह एवं श्राविका रत्न श्रीमती मंगला बहन शाह, बम्बई की गहन रुचि है। आपकी भावना है कि संघ द्वारा जितने भी आगम प्रकाशन हों वे अर्द्ध मूल्य में ही बिक्री के लिए पाठकों को उपलब्ध हो। इसके लिए उन्होंने सम्पूर्ण आर्थिक सहयोग प्रदान करने की आज्ञा प्रदान की है। तदनुसार प्रस्तुत आगम पाठकों को उपलब्ध कराया जा रहा है, संघ एवं पाठक वर्ग आपके इस सहयोग के लिए आभारी है।
आदरणीय शाह साहब तत्त्वज्ञ एवं आगमों के अच्छे ज्ञाता हैं। आप का अधिकांश समय धर्म साधना आराधना में बीतता है। प्रसन्नता एवं गर्व तो इस बात का है कि आप स्वयं तो आगमों का पठन-पाठन करते ही हैं, पर आपके सम्पर्क में आने वाले चतुर्विध संघ के सदस्यों को भी आगम की वाचनादि देकर जिनशासन की खूब प्रभावना करते हैं। आज के इस हीयमान युग में आप जैसे तत्त्वज्ञ श्रावक रत्न का मिलना जिनशासन के लिए गौरव की बात है। आपकी धर्म सहायिका श्रीमती मंगलाबहन शाह एवं पुत्र रत्न मयंकभाई शाह एवं श्रेयांसभाई शाह भी आपके पद चिन्हों पर चलने वाले हैं। आप सभी को आगमों एवं थोकड़ों का गहन अभ्यास है। आपके धार्मिक जीवन को देख कर प्रमोद होता है। आप चिरायु हों एवं शासन की प्रभावना करते रहें, इसी शुभ भावना के साथ!
आए दिन कागज एवं मुद्रण सामग्री के मूल्यों में निरंतर वृद्धि हो रही है। इस प्रकाशन में जो कागज काम में लिया गया वह उत्तम किस्म का मेपलिथो है। बाईडिंग पक्की तथा सेक्शन है। बावजूद इसके आदरणीय शाह परिवार के आर्थिक सहयोग के कारण इसके प्रत्येक भाग का मूल्य मात्र ४०) ही रखा गया है, जो अन्यत्र से प्रकाशित आगमों से बहुत अल्प है। सुज्ञ पाठक बंधु संघ के इस नूतन प्रकाशन का अधिक से अधिक लाभ उठावें। इसी शुभ भावना के साथ!
संघ सेवक ब्यावर (राज.)
नेमीचन्द बांठिया दिनांकः १०-१-२००३
अ. भा. सुधर्म जैन संस्कृति रक्षक संघ, जोधपुर
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