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इस प्रकार प्रस्तुत आगम को चौबीस ही दण्डकों के जीवों के भेद-प्रभेद के साथ उनकी विभिन्न स्थितियों का कोष कहा जा सकता है। क्योंकि चौबीस दण्डकों के जीवों का विशद् वर्णन जैसा इस आगम है, वैसा अन्य किसी आगम में नहीं है। इसके अध्ययन से जीव को सम्पूर्ण संसार के संस्थिति का पूर्णरूपेण अनुभव हो जाता है। फलस्वरूप वह अपनी भूत कालीन चारों गतियों की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन कर अपने वर्तमान जीवन को आध्यात्मिक मार्ग में जो पुनः उन गतियों के परिभ्रमण से बच सकता है उसमें जो सकता है। इस आगम की महत्ता बताते हुए आचार्य भगवन्त फरमाते हैं कि जीवाजीवाभिगम नामक उपांग राग रूपी विष को उतारने के लिए श्रेष्ठ मंत्र के समान है। द्वेष रूपी आग को शान्त करने हेतु जलपूर के समान है। अज्ञान तिमिर को नष्ट करने के लिए सूर्य के समान है। संसारी रूपी समुद्र को तिरने के लिए सेतु के समान है। बहुत प्रयत्न द्वारा ज्ञेय है एवं मोक्ष को प्राप्त कराने की अबोध शक्ति युक्त है। आचार्य भगवन्तों के उक्त विशेषणों से प्रस्तुत आगम का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है।
श्री अखिल भारतीय सुधर्म जैन संस्कृति रक्षक संघ की आगम बत्तीसी प्रकाशन योगना के अर्न्तगत इस सूत्रराज का प्रथम प्रकाशन किया जा रहा है। इसके हिन्दी अनुवाद एवं विवेचन का आधार प्राचीन टीकाओं के अलावा आचार्य मलयगिरि की वृत्ति प्रमुख रही है एवं मूल पाठ के लिए संघ द्वारा प्रकाशित सुत्तागमे का सहारा लिया गया है। टीका का हिन्दी अनुवाद श्रीमान् पारसमल जी चण्डालिया ने किया। इसके बाद उस अनुवाद को मैंने देखा। तत्पश्चात् हमारे अनुनय विनय पूर्वक निवेदन पर ध्यान देकर पूज्य गुरुदेव श्री श्रुतधर जी म. सा. ने पूज्य पण्डित रत्न श्री लक्ष्मीमुनि जी म. सा. को इसे सुनने की आज्ञा फरमाई। तदनुसार सेवाभावी तत्त्वज्ञ सुश्रावक श्री बस्तीमल जी सा. · सालेचा बालोतरा वालों ने पूज्य लक्ष्मीमुनि जी म. सा. को सुनाया। पूज्य गुरुभगवन्तों ने जहाँ भी आवश्यकता समझी संशोधन कराने की महती कृपा की। अतएव संघ पूज्य गुरु भगवन्तों एवं सुश्रावक श्री बस्तीमल जी सा. सालेचा का हृदय से आभार व्यक्त करता है। ___ अवलोकित प्रति का प्रेस काफी तैयार होने से पूर्व हमारे द्वारा पुनः अवलोकन किया गया। इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र के प्रकाशन से पूर्व हमारे द्वारा पूर्ण सर्तकता एवं सावधानी बरती गई है। बावजूद हमारी अल्पज्ञता के कारण कही भी त्रुटि रह सकती है। अतएव तत्त्वज्ञ मनीषियों से निवेदन है कि इस प्रकाशन में कही कोई गलती दृष्टिगोचर हो तो कृपा करके हमें सूचित करने की कृपा करावें। हम उनके अनुगृहित होंगे। वस्तुत: वही सत्य एवं प्रमाणिक है जो सर्वज्ञ कथित आशय को उद्घाटित करते हैं।
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