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प्रथम प्रतिपत्ति - तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन - खेचर के भेद
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विवेचन - आकाश में उड़ने वाले पक्षियों को खेचर प्राणी कहते हैं। आकाश के पर्यायवाची अनेक शब्द हैं तथापि आगम में प्रायः तीन शब्दों का प्रयोग विशेष रूप से देखने में आता है। यथा - ख, खे, खह। इसलिये तीन शब्दों का प्रयोग होता है। यथा - खचर, खेचर और खहचर। यहां मूलपाठ में खहचर (खहयर) शब्द दिया गया है तथा चर का अर्थ है-विचरण करने वाले। अतः पूरे शब्द का अर्थ यह हुआ कि 'खे' अर्थात् आकाश में 'चर' अर्थात् विचरण करने वाले प्राणी खेचर कहलाते हैं।
खेचर के चार भेद इस प्रकार किये गये हैं -
१. चर्म पक्षी - चर्ममय अर्थात् चमड़े की पंख वाले पक्षी चर्मपक्षी कहलाते हैं। जैसे - चमगादड़ आदि।
२. रोम पक्षी - रोममय अर्थात् रोम की पंख वाले पक्षी रोमपक्षी कहलाते हैं। जैसे - हंस, बगुला, चीड़ी, कबूतर आदि। . ३. समुद्गक पक्षी - समुद्गक का अर्थ है डिब्बा। जिन पक्षियों के पंख बैठे हुए या उड़ते हुए भी डिब्बे की तरह बंद ही रहते हैं, खुलते नहीं, उन्हें समुद्गक पक्षी कहते हैं। - ४. वितत पक्षी - वितत का अर्थ है फैला हुआ। बैठे हुए अथवा उड़ते हुए जिन पक्षियों के पंख हमेशा फैले हुए ही रहते हैं उन्हें वितत पक्षी कहते हैं। उनके पंख बैठते समय भी बन्द नहीं होते, खुले ही रहते हैं।
से किं तं चम्मपक्खी ?
चम्मपक्खी अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - वग्गुली जाव जे यावण्णे तहप्पगारा, से तं चम्मपक्खी ।
भावार्थ - चर्म पक्षी कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
चर्मपक्षी अनेक प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार है - वल्गुली यावत् इसी प्रकार अन्य जो पक्षी हों उन्हें चर्म पक्षी समझना चाहिये। इस प्रकार चर्मपक्षी कहे गये हैं।
विवेचन - प्रज्ञापना सूत्र में चर्म पक्षी के भेद इस प्रकार बताये हैं - वल्गुली (चमगादड़) जलौका, अडिल्ल, भारण्ड पक्षी, जीवंजीव, समुद्रवायस (समुद्री कौए) कर्णत्रिक पक्षी, विडाली पक्षी (विरालिंका) इसी प्रकार के अन्य पक्षी चर्म पक्षी हैं।
शंका - भारण्ड पक्षी की क्या विशेषता होती है ?
समाधान - अभिधान राजेन्द्र कोष भाग ५ पृष्ठ १४९१ में भारण्ड शब्द की व्याख्या इस प्रकार दी है -
"भारण्ड पक्षिणोः किल एक शरीरं पृथग् ग्रीवं त्रिपादं च भवति तोच अत्यन्त अप्रमत्त तया एवं निर्वाह लभेते इति भारण्डः (ठाणांग ९)
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