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________________ ८० जीवाजीवाभिगम सूत्र REKHA उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साई सेसं जहा जलयराणं जाव चउगइया दुआगइया परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता, से तं भुयपरिसप्प संमुच्छिमा, से तं थलयरा॥ भावार्थ - भुजपरिसर्प सम्मूर्छिम स्थलचर कितने प्रकार के कहे गये हैं ? भुजपरिसर्प सम्मूर्छिम स्थलचर अनेक प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार है - गोह, नेवला यावत् अन्य इसी प्रकार के जो प्राणी हैं वे भुजपरिसर्प हैं। ये संक्षेप से दो प्रकार के कहे हैं - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इन जीवों के शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल का अंसख्यातवां भाग और उत्कृष्ट धनुष पृथुत्व (दो धनुष से नौ धनुष तक) है। स्थिति उत्कृष्ट बयालीस हजार वर्ष की है। शेष सारा वर्णन जलचरों की भांति समझना चाहिये यावत् ये चार गति वाले, दो आगति वाले, प्रत्येक शरीरी और असंख्यात है। यह भुजपरिसर्प सम्मूर्च्छिम स्थलचर का वर्णन हुआ। इस प्रकार स्थलचर का निरूपण पूर्ण हुआ। विवेचन - प्रज्ञापना सूत्र में भुजपरिसर्प के विषय में इस प्रकार प्रश्नोत्तर है - प्रश्न - भुजपरिसर्प कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - भुजपरिसर्प अनेक प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - नकुल (नेवले) सेहा, शरट . (गिरगिट), शल्य, सरंठ, सार, खोर, घरोली (छिपकली), विषम्भरा, मूषक (चूहा), मंगूस (गिलहरी) पयोलातिक (प्रचलायित) छीरविडालिका (क्षीर विरालिया) जोहा, इसी प्रकार के अन्य जितने भी प्राणी हैं, उन्हें भुजपरिसर्प समझना चाहिये। भुजपरिसर्प के २३ द्वारों का वर्णन जलचरों के समान हो समझना चाहिये किंतु निम्न द्वारों में अंतर हैं - ____१. अवगाहना द्वार - सम्मूर्छिम भुजपरिसर्प स्थलचर जीवों की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट धनुष पृथक्त्व है। २. स्थिति द्वार - इन जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बयालीस हजार वर्षों की होती है। शेष वर्णन जलचर जीवों के समान ही है। खेचर के भेद से किं तं खहयरा? खहयरा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - चम्मपक्खी लोमपक्खी समुग्गपक्खी विययपक्खी॥ भावार्थ - खेचर कितने प्रकार के कहे गये हैं ? : खेचर चार प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - १. चर्म पक्षी २. लोम (रोम) पक्षी ३. समुद्गक पक्षी और ४. वितत पक्षी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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