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________________ प्रथम प्रतिपत्ति बमस्पतिकायिक जीवों का वर्णन बहुबीजक वृक्षों में मूला असंख्यात्र जीवों वाले होते हैं। इनके कंद स्कन्ध, स्वधार खिाऔर । प्रवाल कोंपल) असंख्यात जीवों वाले होते. होपाइसके पते में प्रत्येक जीवार एक प्रतेपएिकएक जीव) होता है। इनके पुष्प अनेक जीवों वाले होते हैं और फल बहुत बीज वालें होकर SE Pists मा शंका - यदि वृक्षों के मूला आदि अनेक प्रत्येक शरीरी जीवों से युक्ता है तो फिरकीअखण्ड शरीराकार रूप से क्यों प्रतीत होने हैं.२ FEBy Mकाजीकी TSTE TE र समाचावर इस शंका के समाधान में प्रभुनेदोदृष्टान्त दिके हैंFि DIRE SE १. सरसों की बट्टी का दृष्टान्त-मूल में जो पाठ'जह सगल सरिसवाण दिया है। उसकी पूरी गाथा इस प्रकार है TEE Sो निगा काकीपर जह सगल सरिसवाणं सिलेसमिटसाणचट्टियावट्टीमा !fhi h THE तयसतीयाण चाह होलिहीर सांगाया HIT F fish !THATI TOअर्थात जिस प्रकार अनेक सरसों के ने स्लेवास्तिो प्रत्याजोकिएकाडु आकाजात का सरसों के दाने अलग-भागली अवाहला में रहते हैं। यद्यपि परस्पर चिपके होने के कारण बट्टी के रूप में एकाकार प्रतीत होते हैं फिर भी iz TO THIS RO अलग-अलग होत हैं उसी प्रकार प्रत्येक शरीरी जीवों के शरीर संघात FOTASTFE यरुशकश है परन्त कम रूपी श्लष के कारण परस्पर मिश्रित होने एक शरीराकार प्रतीत होते हैंग क र fhit FE! - TV - STET तर तिलपपडी को दृष्टान्त तिलपपड़ी अनेक तिलों से मिश्रित होती सभी एक कहलाती है Biura काणकार पर 'उसमतल अलग-अलग अपनी अपनी अवगाहना मरहहुएहसा प्रकार प्रत्यक शरारा जावा HALETEERESTLINEKजालाकि कसरार सबात भी कथाचत एकरूप होकर भी पृथक-पृथक अपना-अपना अवगाहना मरहतह। कित साहारण सरारबायरवणस्साकाापा Fra u teTRANोको PETE SHRE TITTER साहारण सरारबाथरवणस्साकापा अणगावा.ापण्णता सिंगबर हिलि सिरिलि सिस्सिसिल किया कि मामलामालिमा कपडा वजकंदे, सूरणक, मल्लु किमिससि भ मोवापि हालिहालोहारी पाहु) थिभु अस्सकपणी सीहकपपीसीबी मुसळी जेयावरणेतहासमासॉलेतीसमोसओ दुविही पण्णत्तातंजहा पजन्तगाय अपजसगी sharp TIE TORRE भावार्थसाधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक का स्वरूप क्या है? SERIFIFE कि मि साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हा वे इस कारण है कि आलू, मूला, अदरेख, हिरिलिसिरिलिसिस्सिरिलि, किट्टिका; क्षीरिका, क्षीरविडालिकी, कृष्णकन्द, का . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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