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प्रथम प्रतिपत्ति - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के २३ द्वारों का निरूपण - आहार द्वार
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१७. उपयोग द्वार ते णं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता? गोयमा! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वे जीव क्या साकारोपयोग वाले होते हैं या अनाकारोपयोग वाले होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे जीव साकारोपयोग वाले भी हैं और अनाकारोपयोग वाले भी हैं। .
विवेचन - ज्ञान और दर्शन में होती हुई आत्म-प्रवृत्ति को 'उपयोग' कहते हैं। संक्षेप में उपयोग के दो भेद हैं - १. साकारोपयोग और २. अनाकारोपयोग। विस्तार से उपयोग के बारह भेद इस प्रकार हैं - ५ ज्ञानोपयोग, ३ अज्ञानोपयोग और ४ दर्शनोपयोग। पांच ज्ञान और तीन अज्ञान रूप आठ प्रकार का उपयोग साकार उपयोग है और चार दर्शन रूप उपयोग अनाकार उपयोग है। - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव,मति-अज्ञानी और श्रुतअज्ञानी होने के कारण साकारोपयोग वाले भी हैं और अचक्षुदर्शन उपयोग की अपेक्षा अनाकार उपयोग वाले भी हैं।
१८. आहार द्वार तेणं भंते! जीवा किमाहारमाहारेंति?
गोयमा! दव्वओ अणंतपएसियाई खेत्तओ असंखेजपएसोगाढाइं कालओ अण्णयरसमयट्ठिइयाइं भावओ वण्णमंताई गंधमंताइं रसमंताई फासमंताई॥
कठिन शब्दार्थ - अणंतपएसियाई - अनंत प्रदेशी पुद्गलों को, असंखेजपएसोगाढाई - असंख्य प्रदेशावगाढ पुद्गलों का, अण्णयरसमयट्ठिइयाई - अन्यतर (किसी भी) समय की . स्थिति वाले।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव किसका आहार करते हैं? .
उत्तर - हे गौतम! वे जीव द्रव्य से अनन्त प्रदेशी पुद्गलों का आहार करते हैं, क्षेत्र से असंख्य प्रदेशावगाढ पुद्गलों का आहार करते हैं काल से किसी भी समय की स्थिति वाले (एक समय, दो समयों, यावत् दस समयों, संख्यात समयों, असंख्यात समयों की स्थिति वाले) पुद्गलों का आहार करते हैं भाव से वर्ण वाले, गंध वाले, रस वाले और स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं।
जाई भावओ वण्णमंताई आहारेंति ताई किं एगवण्णाई आहारेंति दुवण्णाई आहारेंति तिवण्णाई आहारेंति चउवण्णाई आहारेंति पंचवण्णाइं आहारेंति?
गोयमा! ठाणमग्गणं पडुच्च एगवण्णाई पि दुवण्णाइं पि तिवण्णाई पि चउवण्णाई
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