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प्रथम प्रतिपत्ति - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के २३ द्वारों का निरूपण - कषाय द्वार
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३. सादि - उपरोक्त लक्षण से बिल्कुल विपरीत हो जैसे सांप की बांबी अर्थात् नाभि से नीचे का भाग उत्तम प्रमाण वाला हो और नाभि से ऊपर का भाग हीन हो उसे 'सादि संस्थान' कहते हैं।
४. वामन - बौना शरीर हो अर्थात् जिस शरीर में हाथ, पांव आदि अवयव हीन हों और छाती, पेट आदि पूर्ण हों, उसे 'वामन संस्थान' कहते हैं। ____५. कुब्जक (कुबड़ा) - जिस शरीर के हाथ, पांव, मुख और ग्रीवादिक उत्तम हों और हृदय, पेट, पीठ अधम (हीन) हों, उसे 'कुब्जक संस्थान' कहते हैं।
६. हुण्डक - जिस शरीर में सभी अंगोपांग किसी खास आकृति के न हों (खराब हों) उसे 'हुण्डक संस्थान' कहते हैं।
उपरोक्त छह संस्थानों में से सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के छठा हुण्डक संस्थान होता है। मूल पाठ और भावार्थ में उनका संस्थांन मसूर की दाल जैसा चन्द्राकार कहा है। चन्द्राकार मसूर की दाल जैसा संस्थान हुण्डक ही है। अन्य पांच संस्थानों में यह आकार नहीं होता। अतः हुण्डक संस्थान में ही इसका समावेश होता है। इसलिये सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के मसूर की दाल जैसी आकृति वाला हुंडक संस्थान समझना चाहिये।
विद्यमान आगमों में सर्वत्र पृथ्वीकायिक आदि ५ स्थावरों के संस्थान हुण्डक नहीं बताकर मसूर की दाल आदि निश्चित प्रकार का बताया गया है। यद्यपि उन सभी आकारों का हुण्डक संस्थान में समावेश हो जाता है फिर भी एक-एक काय के अपने अपने सभी भेदों में निश्चित प्रकार के आकार ही होने से आगमकारों ने इन निश्चित नामों वाले आकारों को ही संस्थान में बताया है। अतः आगम पाठों के अनुसार ५ स्थावरों में आगम वर्णित नाम वाले संस्थानों को बोलना ही उचित रहता है।
___५. कक्षाय द्वार तेसिणं भंते! जीवाणं कइ कसाया पण्णत्ता?
गोयमा! चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा - कोह कसाए माणकसाए माया कसाए लोह कसाए॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उन जीवों में कितने कषाय कहे गये हैं ? . उत्तर - हे गौतम! उन जीवों में चार कषाय कहे गये हैं। यथा - क्रोध कषाय, मान कषाय, माया कषाय, लोभ कषाय।
विवेचन - क्रोधादि रूप आत्मा के विभाव परिणामों को कषाय' कहते हैं। इसके चार भेद हैं - १. क्रोध २. मान ३. माया और ४. लोभ।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों में चारों कषाय पाये जाते हैं।
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