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________________ तृतीय प्रतिपत्ति- मनुष्य उद्देशक - एकोरुक द्वीप में डांस आदि भावार्थ: प्रश्न 'भगवन्! एकोरुक द्वीप में गड्ढे, बिल, दरारें, पर्वत शिखर आदि ऊंचे स्थान, अवपात - गिरने की संभावना वाले स्थान, विषम स्थान, कीचड़ धूल, रज, पंक- कादव, चलनी - पांव में चिपकने वाला कीचड़ आदि हैं क्या ? उत्तर - यह अर्थ समर्थ नहीं है। हे आयुष्मन् श्रमण ! वहां ये गड्ढे आदि नहीं हैं। एकोरुक द्वीप भूमि भाग बहुत समतल और रमणीय है। - एकोरुक द्वीप में कांटे आदि अत्थि णं भंते! एगूरुयदीवे दीवे खाणूइ वा कंटएइ वा हीरएइ वा सक्कराइ वा तणकयवराइ वा पत्तकयवराइ वा असुईइ वा पूइयाइ वा दुब्भिगंधाइ वा अचोक्खाइ वा ? utpuड़े समट्टे, ववगखाणु-कंटग - हीर-सक्कर-तणकयवर-पत्तकयवर - असुइपूइयदुब्भिगंध-मंचोक्ख-परिवज्जिए णं एगूरुयदीवे पण्णत्ते समणाउसो ! स्थाणु (ढूंढ), हीरएड़ हीरक तीखी लकड़ी का टुकड़ा, कठिन शब्दार्थ - खाणूइ तणकयवराइ तृण का कचरा । - भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में स्थाणु, कांटे, हीरक, कंकर, तृण का कचरा, पतों का कचरा, अशुचि, सडांध, दुर्गन्ध और अपवित्र पदार्थ हैं क्या ? Jain Education International ३३५ - उत्तर - हे आयुष्मन् श्रमण ! वहां स्थाणु आदि नहीं हैं। वह द्वीप स्थाणु-कंटक, हीरक, कंकर, तृण कचरा, पत्र कचरा, अशुचि, पूति दुर्गन्ध और अपवित्रता से रहित है। एकोरुक द्वीप में डांस आदि अत्थि णं भंते! एगूरुयदीवे दीवे दंसाइ वा मसगाइ वा पिसुयाइ वा जूयाइ वा लिक्खाइ वा ढंकुणाई वा? णो इट्टे समट्ठे, ववगयदंसमसग - पिसुयजूय- लिक्ख- ढंकुणपरिवज्जिए णं एगूरुयदीवे पण्णत्ते समणाउसो ! प्रश्न - हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में डांस, मच्छर, पिस्सू, जूं, लीख, माकण - भावार्थ आदि हैं क्या ? उत्तर - हे आयुष्मन् श्रमण ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वह द्वीप डांस, मच्छर, पिस्सू, जूं, लीख, खटमल (माकण) से रहित है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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