________________
३२६
जीवाजीवाभिगम सूत्र
HEARRIERRRRRRRRRRRR
___ कठिन शब्दार्थ - आसाए - आस्वाद-रस, गुलेइ - गुड इति, मच्छंडियाइ - मत्सण्डिका-मिश्री भिसकंदे - बिसकंद-कमल कन्द, पप्पडमोयएइ - पर्पट मोदक (खाद्य विशेष), पुष्फउत्तराइ - पुष्पोत्तरेति-पुष्प विशेष से बनी शक्कर, आयंसोवमाइ - आदर्शोपमा, चाउरक्के - चार बार, गोखीरे - गोक्षीर-गाय का दूध, चउट्ठाणपरिणए - चतु:स्थान परिणत, मंदग्गिकडीए - मन्दाग्निक्वथितम्-मंद अग्नि पर पकाया हुआ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उस पृथ्वी का स्वाद कैसा है?
उत्तर - हे गौतम! जैसे गुड़, खांड, शक्कर, मिश्री, कमलकंद, पर्यटमोदक (खाद्य विशेष), पुष्पविशेष से बनी शक्कर, कमल विशेष से बनी शक्कर अकोशिता, विजया, महाविजया, आदर्शोपमा, अनोपमा (ये मीठे द्रव्य विशेष हैं) का स्वाद होता है वैसा उस मिट्टी का स्वाद है अथवा चार बार परिणत एवं चतु:स्थान परिणत गाय का दूध जो गुड़, शक्कर, मिश्री मिलाया हुआ, मंद अग्नि पर पकाया हुआ तथा शुभ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से युक्त हो ऐसे गाय के दूध जैसा वह स्वाद होता है क्या?
हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। उस पृथ्वी का स्वाद इससे भी इष्टतर यावत् मनामतर होता है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पृथ्वी का स्वाद बतलाने के लिये उपमाएं दी गई है। पौण्ड इक्षु रस चरने वाली चार गायों का दूध तीन गायों को पिलाना, तीन गायों का दूध दो गायों को पिलाना और दो गायों का दूध एक गाय को पिलाना, इस प्रकार उस गाय का जो दूध है वह चार बार परिणत और चतु:स्थान परिणत कहलाता है।
पुष्पों और फलों का स्वाद तेसिणं भंते! पुष्फफलाणं केरिसए आसाए पण्णत्ते?
गोयमा! से जहाणामए रएणो चाउरंतचक्कवट्टिस्स कल्लाणे पवरभोयणे सयसहस्सणिप्फण्णे वण्णेणं उववेए गंधेणं उववेए रसेणं उववेए फासेणं उववेए आसायणिज्जे वीसायणिज्जे दीवणिज्जे विहणिजे दप्पणिज्जे मयणिज्जे सव्विंदियगायपल्हायणिज्जे, भवेयारूवे सिया, णो इणढे समढे, तेसि णं पुष्फफलाणं एत्तो इट्ठतराए चेव जाव आसाए णं पण्णत्ते।
कठिन शब्दार्थ - कल्लाणे - कल्याण, पवरभोयणे - प्रवर भोजन-विशिष्ट भोजन, सयसहस्सणिप्फण्णे - शतसहस्र निष्पन्नम्-लाख गायों से संपादित, आसाइणिजे - आस्वादनीयंआस्वादन के योग्य, वीसाइणिज्जे - विस्वादनीयं-पुनः पुनः आस्वादन के योग्य, दीवणिज्जे - दीपनीयं-जठराग्नि वर्द्धक, विहणिज्जे - बृहणीयं-धातुवृद्धिकारक, दप्पणिज्जे - दर्पणीयं-उत्साह आदि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org