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तृतीय प्रतिपत्ति - मनुष्य उद्देशक - पृथ्वी का स्वाद
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वे एकोरुक द्वीप की स्त्रियां हंस के समान चाल वाली हैं। कोयल के समान मधुर वाणी और स्वर वाली, कमनीय और सबको प्रिय लगने वाली होती है। उनके शरीर पर झुर्रियाँ नहीं पड़ती और बाल सफेद नहीं होते। वे व्यंग्य (विकृति), वर्ण विकार, व्याधि, दौर्भाग्य और शोक से मुक्त होती है वे ऊंचाई में पुरुषों की अपेक्षा कुछ कम ऊंची होती हैं। वे स्वाभाविक श्रृंगार और श्रेष्ठ वेश वाली होती है। वे सुंदर चाल, हास, बोलचाल चेष्टा, विलास, संलाप में चतुर तथा योग्य व्यवहार में कुशल होती है। उनके स्तन, जघन, मुख, हाथ, पांव और नेत्र बहुत सुंदर होते हैं। वे सुन्दर वर्ण वाली, लावण्य वाली, यौवनवाली और विलास युक्त होती है। नंदनवन में विचरण करने वाली अप्सराओं की तरह वे आश्चर्य से दर्शनीय हैं। वे प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप होती हैं।
तासि णं भंते! मणुईणं केवइकालस्स आहारटे समुप्पज्जइ? गोयमा! चउत्थभत्तस्स आहारट्टे समुप्पज्जइ। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उन स्त्रियों को कितने काल.से आहार की इच्छा होती है?
उत्तर - हे गौतम! उन स्त्रियों को चतुर्थभक्त अर्थात् एक दिन छोड़कर दूसरे दिन आहार की इच्छा होती है।
. मनुष्यों का आहार तेणं भंते! मणुया किमाहारमाहारेंति? गोयमा! पुढविपुप्फफलाहारा ते मणुयगणा पण्णत्ता, समणाउसो! भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वे मनुष्य कैसा आहार करते हैं ? उत्तर - हे आयुष्मन् श्रमण गौतम! वे मनुष्य पृथ्वी, पुष्प और फलों का आहार करते हैं।
. ., पृथ्वी का स्वाद तीसे णं भंते! पुढवीए केरिसए आसाए पण्णत्ते?
गोयमा! से जहाणामए गुलेइ वा खंडेइ वा सक्कराइ वा मच्छंडियाइ वा भिसकंदेइ वा पप्पडमोयएइ वा पुष्फउत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा अकोसियाइ वा विजयाइ वा महाविजयाइ वा आयंसोवमाइ वा अणोवमाइ वा चाउरके गोखीरे चउठाणपरिणए गुडखंडमच्छंडिउवणीए मंदग्गिकडए वण्णेणं उववेए जाव फासेणं, भवेयारूवे सिया, णो इणढे समढे, तीसे णं पुढवीए एत्तो इट्टतराए चेव जाव मणामतराए चेव आसाए णं पण्णत्ते। ।
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